जज्बात रिश्तों के
कहीं तेरे बुलावे हैं कहीं मंजिल मेरी अपनी सरासर पाक रिश्ते हैं खुले बंधते हैं सांसो में उनमे क्या रखा है देखना जज्बात रिश्तों के कभी मन मार कर अपना मुझतक दौड़ आना तुम कुछ एक दोस्त तेरे हैं कहीं पहचान मेरी है कतारें हैं जो कामों की समयों के अभावों में बातों में रखा क्या है देखना जज्बात रिश्तों के कभी सब छोड़ कर आना हमारे गांव कस्बों में कुछ एक फर्ज तेरे हैं अधूरे सपन मेरे हैं रुके जो काम हैं अपने मनों के रूठ जाने में गुस्से में रखा क्या है देखना जज्बात रिश्तों के कभी सब त्याग कर आना मेरी खली सी दुनियाँ में