गुड़ सी मीठी
वो चासनी सी मीठी है वो गुड़ की भेली सी भी है ईख के खेतो हरी भरी वो पूरी चीनी मिल सी है वो लौकी बैल सी कोमल है वो कोपल नई नई सी है मां के आंगन की तुलसी वो पूरी ही फुलवारी है वो सूरत की भोली है वो मूरत की भाली सी भी है गुस्से की लाल कुमुद सी वो मिर्चों की आगनबाड़ी है वो सर्द हवा का झौंका सा है गरम लू के थपेड़े सी भी है सावन का श्रींगार सी है वो जीवन हवा बासंती है