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Showing posts from January 19, 2025

केदार

अन्नत में शून्य होकर  खुदकुशी के द्वार पर  सत्य को शिव से मिलाकर  मैं पार पाना चाहता हूँ देह भी तेरी रही सांस सब तुझसे मिली लाख लांछन मैं लिए बस गरल पीना चाहता हूँ मलंग सा फिरता रहूँ राह बस केदार हो छोड़ कर मैं जग सदा फिर शून्य होना चाहता हूँ