केदार
अन्नत में शून्य होकर खुदकुशी के द्वार पर सत्य को शिव से मिलाकर मैं पार पाना चाहता हूँ देह भी तेरी रही सांस सब तुझसे मिली लाख लांछन मैं लिए बस गरल पीना चाहता हूँ मलंग सा फिरता रहूँ राह बस केदार हो छोड़ कर मैं जग सदा फिर शून्य होना चाहता हूँ