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Showing posts from October 13, 2024

"न मातुः परदैवतम्"

 दुनियां मातृत्व और पितृत्व  प्रार्थमिकताओं के दो समाजों में बटीं हुई है। मनुष्य जीवन के पढ़ाई से लेकर अन्य सभी पहचान पत्रों में कहीं पिता का नाम लिखा जाता है कभी माँ का , कई दस्तावेजों में दोनों को नाम।  कुछ ऐसे भी दस्तावेज़ होते हैं जहा केवल एक ही नाम की जरूरत है , ऐसे में कौन सा नाम ज्यादा उन पहचान पत्रों में ज्यादा उचित है ये एक विचारणीय विषय है।  पिता की संपत्ति पर बच्चे के हक़ को बनाये रखने के लिए शायद ये उचित लगे की आदमी  की  पहचान के कागजों में उसके पिता का नाम लिखा जाय।  पर जिस तरह आज समाज बदल गया है , परिस्थितियां बदली हैं और  कई शादियां बहुत लम्बी  टिक नहीं पा रही हैं , ये देखकर लगता है कि बच्चे की पहचान सबसे ज्यादा माँ से है इसलिए ऐसे पहचान पत्रों में जहाँ माँ न नाम नहीं है वहाँ माँ का नाम लिखा जाना चाहिए । पितृत्व  प्रार्थमिकताओं वाले  समाजों में ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर समय और काल की मांग यही लगती है।  यूँ तो माँ पिता में कोई तुलना नहीं हो सकती और  सामाजिक पहचान के लिए दोनों जरूरी  हैं पर जीवन पर जिसका हक़ है वो माँ ही हो सकती है । आज जिस तरह का समाज होता चला जा रहा

उच्य शिक्षा के बदलते सोपान

 उच्य शिक्षा के बढ़ते सोपानों में आज की युवा पीढ़ी और परिवारों में एक होड़ सी लगी है कि कोण उच्य शिक्षा संसथान अच्छी रैंकिंग रखता है , किस देश में पढ़ाई अच्छी है, किस देश कि फीस कम है , किस देश में स्कालरशिप और जॉब कि संभावनाएं ज्यादा हैं और किस देश में सुरक्षा ज्यादा हैं।  अच्छी इंग्लिश शिक्षा कि बात  की जाय तो आज भी एशिया के लोगो के लिए मुख्यतया चार देश  अमेरिका, इंग्लैंड , कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ही  प्रमुख  हैं।  एशिया में सिंगापुर और हांगकांग भी बहुतायत में स्टूडेंट्स को आकर्षित करते  रहे हैं।  इसका मुख्या कारण इन देशो में शिक्षा की भाषा इंग्लिश हैं।   वहीं  एशियाई बड़े देश इंडिया और चीन अपनी अधिक जनसख्या के कारण अपने ही छात्रों के लिए यथोचित उच्य शिक्षा संसथान ने देने के कारण बाहरी छात्रों की उतना आकर्षित नहीं कर पाए हैं।   लेकिन समय से साथ के अब भारत चीन के अलावा नीदरलैंड , जापान, नूज़ीलैण्ड , फ्रांस,  स्पेन , इटली , रूस आदि देश भी शिक्षा को बढ़ावा देकर विदेशी छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।  जिससे विदेशी छात्रों को आकर्षित करने वाले बड़े गोले (BUBBLE) अब शिफ्ट होते से

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( ए आई) रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है?

क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए  आई ) युवा मस्तिष्क की रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है? आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस के ज़माने में ये कहना बड़ा मुश्किल है कि आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस रचनात्मकता को बढ़ावा दे रही है , मार रही है या चुनौती दे रहा है? जीवल शैली को थोड़ा आसान बनाने के लिए सभी उम्र के लोग आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रहे हैं जो शायद कही से गलत नहीं है और सीखने कि प्रक्रिया को विस्तार देते हैं।  पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत  जल्दी  शिक्षा में उपयोग होना कई चुनौतियां खड़ी कर रहा है । शिक्षकों ने उतनी जल्दी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रयोग करना नहीं सीखा जितनी जल्दी विद्याथियों ने सीख लिया। ये सब जनरेशन गैप का प्रभाव है युवा पीढ़ी टेक्नोलॉजी से सम्बंधित बातों में जल्दी महारत हासिल करती है ।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को टेक्नोलॉजिकल सुगमता का एक अच्छा प्रयोग भी कहा जा सकता है पर वर्तमान पीढ़ी जिस तेजी से  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग हर काम में बिना सोचे समझे कर रही है वो सोचनीय है और प्रश्न तब और गंभीर हो जाता है जब सीखने के पर्याय के रूप में आर्टिफ