कहीं दूर
एक नदी बहती गाँव मेरे
एक सफर सूना है मन मेरे
पहाडों से लौटकर आवाज आती तो है
खनक है कि मन कहीं बसी है मेरे
तकता है एक सपना गिनता है दिन कई
ढकता है नकाब उजडता है मन कहीं
रात के अन्धेरे का एक सूनापन
बुलाता है भटकता सा मन कहीं
नजर है कि दूर जाती है कहीं
मन है कि सहमता है साहस कहीं
वो न्यौतों का दौर अब खत्म सा
खण्डहर तो है मन पर जिन्दा भी है अभी
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