धूप
ये वक्त अलग है कि वक्त नही है
समय की दरिन्दगी में मन का वेग नही है
आशाओं के आसमान पर एक तारा है
बादलों के पीछे एक फैला आसमा है
कोपल फूटेगी दरख्तों के साये से
कल्पना के बीज गहरे गुमशुम तो हैं
ढलता ही सही फकत उजाला अभी बाकी है
रात लम्बी है तो क्या सुबह की धूप अभी बाकी है
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