मनगीत
मन ने जो गुनगुनाया वो मनमीत है
जो खरा सा लगा वोही मनगीत है
प्रीत संगीत था याद रख ना सका
यूँ धुनों से भुलाया गया ना कभी
बात ने जो कहा भावनाएं रही
जो बचा सा रहा राह मै खो गया
टीस दर्दो में है सह सका हूँ अभी
यूँ तेरे लौट जाने की उम्मीदें नहीं
कर्म को फर्ज जाना सफलता नहीं
भेद अपना छुपाना न आया कभी
रास्तों में यूहीं सब बिखरता रहा
यूँ तो मानक गड़ाए नहीं हैं कभी
Comments
Post a Comment