इस क़दर
वो फैला रहा इस क़दर
जीवन के हर मोड़ पर
अपने सागर से मेरे पहाड तक
यादों की हर डगर पर
वो दिखता रहा इस क़दर
जो पा न सकूँ हर मंज़िल पर
अपनी ख़ामोशी से मेरी बकवास तक
बातों के हर असर पर
वो सोच मे बसता गया इस क़दर
जो मिला अनगिनत बहर पर
अपनी सीमाओं से मेरे स्वच्छन्द आकाश तक
दायरों के हर द्वार पर
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