ख़त्म है

वो ठूँठ जो अकड़े रहते हैं
चटक ही जाते है 
वैसे ही झूठी बुनियादों के 
रिश्ते ढह ही जाते हैं 

अभिमान अभिशाप बन जाता
गर झूठ का गुरुर हो
कोमल आशाओं पर ओलावृठी
विश्वास टूट ही जाता है

वो गुमसुम तुझे सोचने का दौर
ख़त्म होना था हो गया
ये अपने से अजनबी के सफ़र 
ख़त्म हो ही जाते हैं 

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