तु वजह रही
फ़ुरसत हो न हो यहाँ
विचारों मे भी फ़ज़ीहत हो
मन से दूर कब हो पाया
तु हर जश्नों की वजह मेरी
क़िस्मत साथ हो न हो यहाँ
महनत मे जंक सी लगे
न होना भी हौसला देता रहा
तु हर ख़्बाव मे शामिल रहा
क़ुदरत नाराज़ सी तब लगी
जब तेरी पलकों को भीगोया था
वो दिन आख़िरी था शंकाओं का
तु तब से अपनो सा ही लगा
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