खाली रहा
पर्वतों के पार से एक
आवाज़ आयी चली गयी
चाँद भी ठहरा मिला
और चाँदनी ग़ायब रही
अहसास थे लाखों मगर
पर एक डगर खाली मिली
बजता रहा एक ढोल सा
ताल कुछ मिलायी नही
प्रवाह अविरल बहता रहा
कुछ कभी ठहरा नही
मन्द था प्रकाश फिर भी
घुप अन्धेरा छाया नही
उम्मीदों के खेत थे हर तरफ
फ़सल स्नेह की उगी नही
नज़रों ने घेरा हर तरफ
वो नज़र टकरायी नही
ख्वाइश जीतने की थी नही
पर मन कभी हारा नही
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