राहें तब भी

कभी कोई विरहन पूछेगी
कभी बहस कोई सड़क चलेगी
धी में सनी कोई गुदगुदी रोटी
पालक संग कोई चाय तकेगी
रंग लगी पुरखों की  हवेली 
नल की टोंटी सूखी होगी
शक सूबा सवाल कभी सब
कभी शहर में आँधी होगी
मिजाज कभी बदले से होंगें
कभी प्रश्नों की झडी सी होगी
कविता तब भी शब्द तकेगी
डोर सांस अटकी सी होगी
तब भी जब सब नल सूखेंगें
तब भी जब सब सडक नपेंगी
तब भी जब घनघोर अन्धेरा
राहे तब भी ढूंढ में होंगी 

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