फ़र्क़ है इतना

तेरे और मेरे पत्थर होने मे 
बस फ़र्क़ है इतना 
तु भावनाऐं छोड़ के आया है 
मै अहसास मार के बैठा हूँ 

तेरे और मेरे दूर होने मे 
बस फ़र्क़ है इतना 
तु मुँह मोड़ के बैठा है
मैंने दूरीयां बढ़ा ली है 

तेरे और मेरे रूठ जाने में
बस फ़र्क़ है इतना 
तु रुसवा करके दौड़ा है 
मै अपना बन सब खो बैठा 

.........



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