ग़ैर नही
उम्मीदों की पौध हर बार नही खिलती
हर बार विश्वास की डोर सधी नही रहती
जब चारों और हों आशंकाओं की बीज
स्नेह की फ़सल खड़ी नही रहती
हर सपना सच हो ये ज़रूरी तो नही
ऐसे मे सपने देखना छोड़ दें ये लाज़मी नही
पंछी जब छौडने को हो घरौंदा यहाँ
अभिमानों की दिवार खड़ी नही रहती
सबकी प्राथमिकताओं के दौड़ है यहाँ
ऐसे मे कोई रूक जाय ये मुमकिन नही
यादों मे कुछ अपनेपन की झलक हो जहाँ
वहाँ भावनाऐं कभी ग़ैर नही होती .....
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