कभी नही
वो जो ख़ंजरों के निशान हैं मेरी पीठ पर
कभी किसी से कोई बयां किया नही
ज़माने भर को जो पढ़ता पढ़ाता गया
उसमें कभी मुझको पढ़ा नही
वो जो गिनता रहा मेरी शैतानियाँ
वो कृष्ण सा कभी बना नही
जो चलाता रहा हर बाण मेरी ओर
उसने मुझको निशश्त्र देखा नही
वो जो पूछता रहा मेरी बात सभी से
कभी मुझसे कोई बात किया नही
वो जो नज़र फेर के चला गया
उसके पदचापों को कभी सुना नही
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