परिभाषा नहीं रही
तेरे पास होकर ये महसूस होता है
तु कब दूर गया था मन से
हर पल तु ही था विचारों मे
हाँ ये बन्धन कभी परिभाषित न कर पाया
तु ही था जो मन को खुशी दे गया
हर नाराज़गी के बाद मन जीत गया
लाख कोशिश की हों तेरे अपनो ने
पर भूल कर तेरी हँसी को फिर हंस नहीं पाया
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