तेरे जैसे
सोचता हूँ क्या रह गया आधा अधूरा
ये मन की ख़ामोशी है
या विग्रह का गीत है
तुझसे नाराज़गी के बाद
जीवन अब ख़ामोश ही है
कभी सोचता हूँ कि झुक जाऊँ
कहीं ख़ामोशी फासले ना बढ़ा दे
पर तुने कब मुझे नज़दीक माना
तो तुझसे दूरियों के बाद
ख़ुद से नज़दीकियाँ भी ख़ामोश है
कहना देखना सुनना जो लाम पर है
नज़र जता ना पाती कुछ भी
होंठों से हँसी नदारत है यहॉ
वो क़दम शायद ही ठिठकते हो कहीं
तेरे साथ रहकर हम भी तुझ जैसे हो गये
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