पास रहा तु
उछले पानी का सा रुप लिये
धवल चाँदनी सा जगमग
यूँ बसा रहा तु मन मे हरदम
हिमालयी झीलों मे प्रतिबिम्ब सा
मेरी छन्दों से दूर कविताओं मे
आस का कोई गीत सा
यूँ रचा बसा है जीवन मे
घने जंगलों मे सूरज की एक किरण सा
रिश्ता नहीं है कोई फिर भी अपनापन
मन से मन का कोई मिलन सा
यूँ तो रहा दूरियों मे हरदम तु
पास लगा इस सागरतट पर मेरा हिमालय सा .....
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