तु भी तो शुरु कर

तु अगर पितामह है प्रतिज्ञा की
तो यहां भी बरबरिक हूँ 
देखेगे तेरे स्वाँग कब तक
कभी तु भी तो शुरु कर

मन मे स्नेह रहेगा सदा
सम्मानों मे तेरे कमी न होगी
बोलती नज़र कब तक चुप रहेगी 
कभी तु भी तो शुरु कर

मन पढ लेता है वो रिक्त वाले शब्द
सुन भी लेता है अनकही शिकायतें 
मानते तो होगें लोग पर पत्थर नहीं
कभी तु भी तो शुरु कर

ऐसे तो जमा होंगे कुछ ख़ाली कल
अपनो की यादों मे कड़वे अहसास 
आने वाले कल की कुछ धूमिल यादें
कभी तु भी तो शुरु कर 





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