तेरा शक
किसको समझाना था यहाँ
किससे मेल मिलाप था
स्नेह तब भी सिफ़र था
और भावनाएँ शून्य भी
मैं आस में था चाँद के
जो बिखेर दें स्नेहता
बर्क बनकर बरसा है वो
उम्मीदों की इस झोपड़ी पर
आज भी जब देखता हूँ
उस आसमा की ओर
निर्मल दिखी वो आकाशगंगा
जो अब भी सबसे दूर है।
एकाकी ही जिया है जीवन
उम्मीदों के इन जंगलों मे
तेरा भी शक लाज़मी है
निस्वार्थता होती कहाँ है ?
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