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जन्मभूमि

म्येरी जन्मभूमि त्येरी जै जैकारा हो गौ गौल्या ग्वठ्यार त्येरी जै जैकारा हो घौर प्वगडा बाँजा त्येरी जै जैकारा हो जै केदार काँठा त्येरी जै जैकारा हो उँची हिवाल्यी डांडी त्येरी जै जैकारा हो नीसी गंगा गड्यार त्येरी जै जैकारा हो थाती की स्कूल त्येरी जै जैकारा हो ननकूडा की धार त्येरी जै जैकारा हो म्येरी जन्मभूमि त्येरी जै जैकारा हो स्कूला का बाटा त्येरी जै जैकारा हो गैल्या कू दगडू त्येरी जै जैकारा हो छूटिग्ये पैथर सब त्येरी जै जैकारा हो

कलम

लिखूँगा क्या खोया  क्या पाया मैने तुझसे मिलने के बाद कुछ कलम घिसी कुछ स्याही छिडकी कुछ दाग लिए अपमान कुछ शब्दों में रची बसी है मेरी एक पहचान कविता लिखती कलम चली है जीवन एक कहानी सी लिखा हिमालय कभी है हमने कभी बहे तट नदी समान कुछ पहचान अधूरी सी है कुछ लिखी कभी फिर मीटी नही चलती रही कलम जीवन की जैसे साथ तुम्हारा हो....

लाम पर

इस दौड़ में न जाने कब जीवन खत्म हो जाता है उडानें छूती तो हैं आसमा सफर जमीदोज हो जाते हैं उडानें कल्पनाओं की आशाऐं सफलताओं की कलम लिखती तो है बहुत कुछ कहानी खत्म हो जाती है लाम पर हैं कदम सदा सीमाऐं लाँघ जाता हूँ एक जहां है सरहदों के पार फिर सफर खत्म हो जाते हैं

जज्बात रिश्तों के

 कहीं तेरे बुलावे हैं  कहीं मंजिल मेरी अपनी  सरासर पाक रिश्ते हैं  खुले  बंधते हैं सांसो में  उनमे क्या रखा है  देखना जज्बात रिश्तों के  कभी मन मार कर अपना  मुझतक दौड़ आना तुम  कुछ एक दोस्त तेरे हैं  कहीं पहचान मेरी है  कतारें हैं जो कामों की   समयों के अभावों में  बातों में रखा क्या है  देखना जज्बात रिश्तों के  कभी सब छोड़ कर आना  हमारे गांव कस्बों में  कुछ एक फर्ज तेरे हैं  अधूरे सपन मेरे हैं  रुके जो काम हैं अपने  मनों के रूठ जाने में  गुस्से में रखा क्या है  देखना जज्बात रिश्तों के  कभी सब त्याग कर आना  मेरी खली सी दुनियाँ में  

कहीं दूर

एक नदी बहती गाँव मेरे एक सफर सूना है मन मेरे पहाडों से लौटकर आवाज आती तो है खनक है कि मन कहीं बसी है मेरे तकता है एक सपना गिनता है दिन कई ढकता है नकाब उजडता है मन कहीं रात के अन्धेरे का एक सूनापन बुलाता है भटकता सा मन कहीं नजर है कि दूर जाती है कहीं मन है कि सहमता है साहस कहीं वो न्यौतों का दौर अब खत्म सा खण्डहर  तो है मन पर जिन्दा भी है अभी

छात्र कल्याण: (Student' Well- being) केवल शब्द नहीं, एक वास्तविक जिम्मेदारी

  छात्र कल्याण: केवल शब्द नहीं, एक वास्तविक जिम्मेदारी आजकल की शिक्षा व्यवस्था में "छात्र कल्याण" एक प्रमुख विषय बन चुका है। यह प्रयास किया जाता है कि विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, उन पर कोई मानसिक या शारीरिक दबाव न डाला जाए और उन्हें जबरदस्ती किसी चीज़ के लिए विवश न किया जाए। शिक्षा संस्थानों का प्रयास होता है कि विद्यार्थियों के साथ सदैव संवेदनशील, सहायक और सम्मानजनक व्यवहार किया जाए। छात्र कल्याण  का तात्पर्य है विद्यार्थियों का  संपूर्ण मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक और शैक्षणिक स्वास्थ्य । यह इस बात का संकेतक है कि विद्यार्थी विद्यालय में कितने सुरक्षित, समर्थित और प्रेरित अनुभव करते हैं, तथा वे जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना किस प्रकार करते हैं। भावनात्मक कल्याण  के अंतर्गत विद्यार्थियों का भावनात्मक रूप से संतुलित, खुश और आत्म-सम्मान से परिपूर्ण होना आवश्यक है। उनमें तनाव, भय या चिंता से निपटने की क्षमता होनी चाहिए और जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण विकसित होना चाहिए। सामाजिक कल्याण  यह सुनिश्चित करता है कि विद्यार्थियों के सहप...

अधूरा

नाम तेरे लिख दी है कविता दिन जब भूले बिसरे हैं कहीं बहा है आँखों पानी कहीं सीना दर्द से रोया है कहीं खिले हैं फूल बूरांस तो कहीं आग पलाश लगाये है भूल गये स्नेह साथ सब कहीं आस के पेड लगाये हैं एक बैठी है माँ उदास सी एक गध्याशं अधूरा छूटा है कहानी ढूँढती शीर्षक अपना जीवन निष्कर्ष तलाशे है

मरूँ अगर

मैं मरूँ जलूँ फिर घाट कुण्ड पर यादें बचपन संग लिए साथ समर्पण रीत प्रीत सब अस्थि अवतरित कलश लिए मैं घुलूँ मिलूँ उस खाक राख सब  शब्द सबद सुर तान लिए सब मंच अमंच स्वर कविता कोकिल सांस समर्पित तन मन सब मैं बदहवाश बेहोश गिरू उस जगह जमीन खलिहान तले माँ रेमन ममता गोदी सो लूँ छोड सकल संसार सब-ए-सब

सार हो

एक सडक छोड के आया हूँ एक शहर जोडने आया हूँ अधूरी सी मंजिलों पर एक इबारत रचने आया हूँ सफर में साथ तेरा हो मंजिल पर कदम तुम्हारा हो कमचली सी पगड़डियों पर मजबूत हाथ तुम्हारा हो  रोटी सी फूलती उम्मीद हो थाली की आखिरी तृप्ती हो कविता की आखिरी पक्ति हो और जीवन का सब सार हो

भगत सिंह

भगत सिह को मानने  वालो गाँधी को अपनाने वालो दिल्ली के दरबारी हो सब कलयुग के अवतारी हो तुम क्या जानो बलिदान भगत सिह गाँधी के मूल्यों में समाहित जीवन की जो धार निरन्तर सीमा पर हर वार निरन्तर तुम वोट गिनों लाशों से सने जात पात और धर्म लडाकर तुम क्या जानो बसुधैव कुटुम्ब तुम पीड देश पहचान क्या पाये