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"न मातुः परदैवतम्"

 दुनियां मातृत्व और पितृत्व  प्रार्थमिकताओं के दो समाजों में बटीं हुई है। मनुष्य जीवन के पढ़ाई से लेकर अन्य सभी पहचान पत्रों में कहीं पिता का नाम लिखा जाता है कभी माँ का , कई दस्तावेजों में दोनों को नाम।  कुछ ऐसे भी दस्तावेज़ होते हैं जहा केवल एक ही नाम की जरूरत है , ऐसे में कौन सा नाम ज्यादा उन पहचान पत्रों में ज्यादा उचित है ये एक विचारणीय विषय है।  पिता की संपत्ति पर बच्चे के हक़ को बनाये रखने के लिए शायद ये उचित लगे की आदमी  की  पहचान के कागजों में उसके पिता का नाम लिखा जाय।  पर जिस तरह आज समाज बदल गया है , परिस्थितियां बदली हैं और  कई शादियां बहुत लम्बी  टिक नहीं पा रही हैं , ये देखकर लगता है कि बच्चे की पहचान सबसे ज्यादा माँ से है इसलिए ऐसे पहचान पत्रों में जहाँ माँ न नाम नहीं है वहाँ माँ का नाम लिखा जाना चाहिए । पितृत्व  प्रार्थमिकताओं वाले  समाजों में ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर समय और काल की मांग यही लगती है।  यूँ तो माँ पिता में कोई तुलना नहीं हो सकती और  सामाजिक पहचान के लिए दोनों जरूरी  हैं पर जीवन पर जिसका हक़ है वो माँ ही हो सकती है । आज जिस तरह का समाज होता चला जा रहा

उच्य शिक्षा के बदलते सोपान

 उच्य शिक्षा के बढ़ते सोपानों में आज की युवा पीढ़ी और परिवारों में एक होड़ सी लगी है कि कोण उच्य शिक्षा संसथान अच्छी रैंकिंग रखता है , किस देश में पढ़ाई अच्छी है, किस देश कि फीस कम है , किस देश में स्कालरशिप और जॉब कि संभावनाएं ज्यादा हैं और किस देश में सुरक्षा ज्यादा हैं।  अच्छी इंग्लिश शिक्षा कि बात  की जाय तो आज भी एशिया के लोगो के लिए मुख्यतया चार देश  अमेरिका, इंग्लैंड , कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ही  प्रमुख  हैं।  एशिया में सिंगापुर और हांगकांग भी बहुतायत में स्टूडेंट्स को आकर्षित करते  रहे हैं।  इसका मुख्या कारण इन देशो में शिक्षा की भाषा इंग्लिश हैं।   वहीं  एशियाई बड़े देश इंडिया और चीन अपनी अधिक जनसख्या के कारण अपने ही छात्रों के लिए यथोचित उच्य शिक्षा संसथान ने देने के कारण बाहरी छात्रों की उतना आकर्षित नहीं कर पाए हैं।   लेकिन समय से साथ के अब भारत चीन के अलावा नीदरलैंड , जापान, नूज़ीलैण्ड , फ्रांस,  स्पेन , इटली , रूस आदि देश भी शिक्षा को बढ़ावा देकर विदेशी छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।  जिससे विदेशी छात्रों को आकर्षित करने वाले बड़े गोले (BUBBLE) अब शिफ्ट होते से

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( ए आई) रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है?

क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए  आई ) युवा मस्तिष्क की रचनात्मकता को नष्ट कर रहा है या उसे चुनौती दे रहा है? आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस के ज़माने में ये कहना बड़ा मुश्किल है कि आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस रचनात्मकता को बढ़ावा दे रही है , मार रही है या चुनौती दे रहा है? जीवल शैली को थोड़ा आसान बनाने के लिए सभी उम्र के लोग आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रहे हैं जो शायद कही से गलत नहीं है और सीखने कि प्रक्रिया को विस्तार देते हैं।  पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत  जल्दी  शिक्षा में उपयोग होना कई चुनौतियां खड़ी कर रहा है । शिक्षकों ने उतनी जल्दी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रयोग करना नहीं सीखा जितनी जल्दी विद्याथियों ने सीख लिया। ये सब जनरेशन गैप का प्रभाव है युवा पीढ़ी टेक्नोलॉजी से सम्बंधित बातों में जल्दी महारत हासिल करती है ।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को टेक्नोलॉजिकल सुगमता का एक अच्छा प्रयोग भी कहा जा सकता है पर वर्तमान पीढ़ी जिस तेजी से  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग हर काम में बिना सोचे समझे कर रही है वो सोचनीय है और प्रश्न तब और गंभीर हो जाता है जब सीखने के पर्याय के रूप में आर्टिफ

कल्पना की वास्तविकता

 एक आधा अधूरा चिंतक होने के नाते कई बार सोचता हूँ की क्या कल्पना में कोई  वास्तविकता छुपी हुई है । क्या कल्पना से वास्तविकता का जन्म हो सकता है। आखिर कल्पनायें हैं क्या ? सिर्फ मन की गूढ़ता या किसी यथार्थ का चिंतन।  कल्पनाओं के झाड़ पर बैठकर कई बार कविता का सृजन करते समय मुझे लगता है की क्या कल्पना मानव मन की सृजनशीलता की पहली कड़ी है। क्या कल्पनाएं झूट का पुलिंदा मात्र हैं और  सत्य सदैव अपरिवर्तनीय होता है या फिर कल्पनाओं में भी जीवन का एक सार है , एक गूढ़ता है और एक रचा बसा संसार है ?  कभी कभी मस्तिष्क मन में बनीं कुछ सोचों, कल्पनाओं या  छवियों का मूल्यांकन करता है जिन्हें वह संसाधित करना चाहता है , कल्पना वास्तविकता की सीमा का आधार सा लगती है । यदि कल्पनाओं के संकेत सीमा पार कर जाता हैं , तो मन  सोचता है कि यह वास्तविक है यदि ऐसा नहीं होता है, तो मन  सोचता है कि यह काल्पनिक है। काल्पनिकता कभी कभी यतार्थ को जन्म देती सी लगती है । जान तक मन विचार शून्य है तब तक न कल्पना का आधार है न वास्तविकता की परिधि।  वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए कल्पना का होना बहुत जरूरी सा लगता है।   कल्पना

हस्ताक्षर

गंगा की पावन धारा में एक गोता खाकर आया हूँ हरसिंगार के फूलों की खूशबू में घुल आया हूँ सांसों में सांसे देकर कुछ पल जीकर आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कोमल से कुछ फूलों की पौध रोप कर आया हूँ धरती में जो बीज पडें थे उन्हे जगाकर आया हूँ स्मरण की आयामों का मन चित्र साथ में लाया हूँ मैं स्नेह की गुफाऊ  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कविता की कुछ नई पंक्तियां शब्दों में लिख लाया हूँ समर्पण की वही कहानी गहरी दोहराकर लाया हूँ सपनों के ताने बानों को थोडा गहरा करके आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ

वृतांन्त

कौन सका है बाँध वो खुशबू कौन पवन को रोक सका गुलमोहर से भरे रास्तों पर कौन तुझे कब भूल सका यादों की कविता लिखती है दिन वो कौन अजान रहा कौन समय जब दूर हुए हम कौन समय अहसास जगा कौन समय ठंण्डी काफी का कौन समय गरमाहट थी कौन समय वो हरियाली और कौन समय आगोश बसी देखो बढते से इन रास्तों पर कब समय मिले कब मंजिल हो चलते रहना साथ मुसाफिर कौन कहाँ कब सांस थमे

मन महाभारत

कोई आँख लगे ही सो जाये  कोई रात रातभर जग जायें कोई वक्त मिले पर बात करे  कोई वक्त वक्त पर बात करे कोई सिमटी दुनियाँ रखता है  कोई फैला आकाश समाये है कोई जीवन संग में बाँध चला  कोई अब भी डामाडोल लगा वक्त सभी का जबाब लिए  मन सबका हिसाब लिए तेरे मन की तु जानें  मैं जौहर आग लगाये लगाये हूँ या कि अब रणभेदी है  या साथ समर्पण हो जाये तेरे मन की तु जाने  मैं अर्धसत्य चक्रव्यूह लडूँ तु तटस्थ रह बलदाऊ सा  मैं एकपक्ष महाभारत लडूँ

दक्षिण काली फौली वाली

फौली का स्यणुं की,  फौली का कोठियालों की फौली का शुक्लौं की जय महाकाली जय माँ दक्षिण काली जय माँ दक्षिण काली देवी देविधार की दस विध्या शक्ति की महाकाल प्रियतमा बामरूप ऊष्ठि ह्वेयी फौली का स्यणुं की... कृष्ठ रक्त रूपों मा अधिष्ठित ह्वेयी कृष्ण रुप दक्षिणा रक्त वर्ण सुन्दरी फौली का स्यणुं की... कराली विकराली उमा चन्द्ररेखा चित्ररेखा  एक जटा त्रिजटा  तारा यक्षिणी ह्वेयी फौली का स्यणुं की... केदार घूमी की ऐयी गौं गौं देवरा जैयी आशिष सुफल पाये जन जन धन्य ह्वेयी फौली का स्यणुं की...

जब भीगी थी

जब भीगे थे बारिश में  क्या याद हमारी आयी थी 'खन्दार' भरे कमरे में  क्या याद हमारी आयी थी सावन झूले पतझड  बोर आम पर आयी थी कलियां केसर बेल नवेली तुलसी घर सज आयी थी जब औढीं थी साडी नीली क्या याद हमारी आयी थी सरसों से पीले खेतों में  क्या याद हमारी आयी थी खाली खिडकी रस्ता देखे  नजर गढायें बैठी थी  बहता पानी सूखा झरना  हरी डाल खिल आयी थी जब भीगी थी पलके गुमशुम क्या याद हमारी आयी थी छाता औढे भीग रही जब  क्या याद हमारी आयी थी

क्वे दिन

क्वे दिन उकाल देखि क्वे दिन उन्द्वार पायी ख्वोयी बिसरी हरची क्वे दिन जग्वाल बिनसरी हो रतब्यणि हो हो द्वोपरी भरमार  सजी धजी थामी जापी  क्वे दिन अकाल  क्वे दिन उज्यालू देखी क्वे दिन घम्माण ऊखरू भक्वरू जागी तापी क्वे दिन खच्याट