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तमाशबीन

राख होना ही कहाँ खाक मिल जाना है एक दिन जलती हुई चिता पर फिर भाप बन जाना है एक दिन इस समर में जीतकर भी सब हार जाना है एक दिन कुछ यतार्थ की नीव रखकर इतिहास बन जाना है एक दिन बोझ जिम्मेदारी का ढोहकर फिर अकेले रह जाना है एक दिन हसना है हसाना है  फिर तमाशबीन बन जाना है एक दिन

निशान

कुछ बस याद रहे काले से निशां रहे जन्मों और अजन्मों में कर्ण कोई कोई राम रहे कुछ आँखों से बह निकले कुछ घूँट गले में अटक गये बातों और खामोशी में जुडे कोई कोई बह निकले कुछ रूखे से बदन गये कुछ गदराये जख्म गये होश और बेहौशी में रोये कोई कोई चीख गये जन्म अजन्म की बात नही दुविधा मन की बह निकली साथ और समर्पण में बिछे कोई कोई पसर गये

तलाश में हूँ

पहाड के ढाल पर नदी का ऊफान हूँ पेड की छाँव में ढकी सी एक बौड हूँ चमकता सा हिमालय पिघलती सी बर्फ हूँ घने से जंगल में कुहरे की चादर हूँ गैहूँ की कोपल पर औंस की सी बूँद हूँ घर के पिछवाडे में नारंगी का पेड हूँ सर्दियों की सुबह में तकती सी धूप हूँ पहाड से बहाँ हूँ समून्दर की तलाश हूँ

खाली है

शून्य के शिखर पर आशाओं के उन्मादों से रची बसी एक दुनियां में सफर अकेले चलना है खाली पडे मकानों में खामोंशी के शोरों से सजे धजे बाजारों में मोल भाव खुद करना है रीते से कुछ बस्तों में डूबी यादों की नावों से सुनसान पडे चप्पों पर रोगन रंग फिर करना है फिर लिखना है गीत वही फिर शब्दों का संसार वही संघर्षो की जमी खडी है फिर चलना है राह वही

दूर कहीं

कुछ ख्वाब अधूरे रखे हैं धागें अभी बधें कब हैं  मिन्नतों के ताले खोले कुछ मन्दिर अभी पूजे कब हैं मन के सूनेपन में तु रीत गीत और प्रीत में तु शब्दों की इन पंखुरियो में थाल सजे सपनो में तु एक पहाडी गांव है तु टेढी मेढी सडक है तु दूर कहीं जो सफर चला है उस मंजिल का आगाज है तु

फिर रूठ जाती है

 वो रूठती है  सताती है  मानती, मान जाती है  और फिर रूठ जाती है  सजती है  बुलाती है  समझती, समझाती है  और फिर रूठ जाती है  जानती है  जताती है  अपना अपनाती है  और फिर रूठ जाती है  सिक्के हैं  पहेली है  मेरी बुनियाद तुझसे है  मेरी कविता मेरे गीतों  के अर्थों में समाहित है  जीवन है  की मृत्यु है  सभी का सार तुझसे है 

तो मुश्किल है

गुस्सा होंगें  तो मान भी जायेंगें रूठ जाएंगे  तो लौट भी आयेंगें बिखर गये  तो समेट लिए जायेंगे छूट गये  तो फिर मिल भी जायेंगें टूट गए  तो फिर मुमकिन नहीं  माला के रूद्राक्ष हैं औगण सा रूप है पत्थर सा मन  और मिट्टी सा स्वभाव है हिमालय की नदी  और पहाडों की बयार है बह तो गये हैं  फिर मिल भी जायेंगें टूट गये  तो फिर मुमकिन नही

आना तुम

कोई वो शाम हो जिसमें तुम्हारे साथ बैठें हों निहारे दूर से हिमला कहें कुछ बात चुपके से बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम कभी जो आँख भर आये कभी मन कुछ अकेला हो मनों में प्रश्न अनगिन हो बुने मन ख्वाब चुपके से बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम कभी सबकुछ अधूरा सा कभी सुनसान रातें हो खुद से हो गिला सिकवा या दुनियां के बहानें हो बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम

प्रीत में

घर की ईट में बच्चों की फीस में मनों की प्रीत में एहसास है जीवन की हर रीत में शिक्षा के आयामों में गीतों के मायनों में  शब्दों के बाणों में सीख है जीवन की हर दौड में किताबों के पन्नों में खेतों के गन्नों में  कुठारों के अन्नों में आस है जीवन की हर सासों में

धराली में बादल फटने से विनाशकारी दृश्य

 धराली में बादल फटने से विनाशकारी दृश्य देखने को मिल रहे हैं उन्हें समझना और उसके प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है । सामान्तया ऐसी घटनाओ में सरकारों को दोष देना सही नहीं है । ये एक प्राकृतिक घटना है है प्रकृति पर किसी का जोर नहीं चलता।  बादल फटना (Cloudburst) एक अत्यंत विनाशकारी प्राकृतिक घटना है, जो विशेष रूप से हमारे जैसे  पर्वतीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें बहुत ही कम समय में अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है, प्रायः 100 मिमी से अधिक बारिश एक घंटे से भी कम समय में सीमित क्षेत्र  में गिरती है। यह तीव्र वर्षण (intense precipitation) बाढ़, भूस्खलन (landslide), नदी-नालों का उफान और व्यापक विनाश का कारण बनता है। यह घटना विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालयी क्षेत्रों में बार-बार घटित होती है और इसके पीछे कई भौगोलिक व जलवायविक कारण होते हैं। पर्वतीय क्षेत्र, विशेष रूप से हिमालय, बादल फटने की घटनाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। इसका मुख्य कारण वहाँ की स्थलाकृति (topography) है। जब गर्म और नमीयुक्त हवाएँ पर्वतीय ढलानों से टकराती ...