कलम

लिखूँगा क्या खोया 
क्या पाया मैने
तुझसे मिलने के बाद
कुछ कलम घिसी
कुछ स्याही छिडकी
कुछ दाग लिए अपमान
कुछ शब्दों में रची बसी है
मेरी एक पहचान
कविता लिखती
कलम चली है
जीवन एक कहानी सी
लिखा हिमालय कभी है हमने
कभी बहे तट नदी समान
कुछ पहचान अधूरी सी है
कुछ लिखी कभी फिर मीटी नही
चलती रही कलम जीवन की
जैसे साथ तुम्हारा हो....

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