वो सूखी नदियाँ बहती तो नही देखी आस के कुछ बीज उगते जरुर देखे पछवा चली कभी कभी पूरवैयां चली सुखाती फ़सल देखी जगाती ख़ुशबू बहीं न जीतना चाहा न मन हार पाया कोशिशों के आसमां की शाम कभी ढली नही
हर माहौल में याद रहेगा अहसास तुम्हारे होने का तुमको पा जाने का सुख और दर्द तुम्हारे खोने का शीत पहाड़ी सुबहों मे वो हाथ हाथ मे याद रहा ठंड मे उलझे होंठों मै तेरा नाम हमेशा याद रहा कहनी थी दो बाते तुझसे तो शंका ख़त्म हो जाएगी स्नेह रहा या आकर्षण सब दुविधा हल हो जाएगी ठूंठ खड़ी सी आशाओं मै एक बेल लपेटे बढ़ती हैं तुम और मै ही दूर दूर हैं बाकि दुनिया अपनी है सीना अपना छलनी होगा सांसे सब थम जाएँगी जीवित हूँ या नश्वर हूँ ये पहेली हल हो जाएगी
वो जो सिखा गया खुद उसे याद नहीं है समय के थपेड़ों में वक्त किसी के पास नहीं है जो मनशक्ति सीखा गया वो ऊर्जा झूठ नहीं है शून्य के बाज़ारों में अहसास किसी के पास नहीं है जो सूर्य सा चमक गया वो परछाई में साथ नहीं है अकेलेपन के विचारों में झूठी स्वांतना किसी के पास नहीं है आंधियों में ख़ामोशी जाता गया सांसो का वो बंधन साथ नहीं है चल मन! दूर कहीं पहाड़ो पर हिमालय सी शांति यहॉं नहीं है
शाम कभी उन राहों पर नज़र तांकती रहती थी हवा कभी उन राहों की छूकर चुपके बह जाती थी झुरमुट के कोने पर कोई चाँद निकलता रहता था सरपट दौड़ लगाती आशा कोई मन अधीर रह जाता था शाम सुहानी बंजर होती धरती आस जगाती कब है मन मन्दिर का कोई कोना श्याम रंग से सजता कब हैं
हिमालय मुझको कब होना था! रावण सा बाँहें फैलाकर सारा जग जीतना कहाँ था! शबरी के झूठे बैरों सा जटायु के कटे पंखों सा सहृदय निश्चय त्याग कर सकूँ लक्ष्मण रेखा पार करना कब था
जो गुथां रहा धागे में पिरोया रहा एक कड़ी में मज़बूती से विश्वास डटा रहा माला के फूल और मोती यूँहीं बिना किसी आधार जुड़े नही रहते जो सदैव सोच में बना रहा गीत ग़ज़लों की लड़ी बनकर सहूर से स्नेह बना रहा जुड़ाव की आस और याद यूँही बिना किसी अपनेपन के जुड़ी नही रहती
बिखरे हुए मकां की अधूरी इमारत टूटे खण्डहर बन भी जाय तो क्या साँचों के निशाँ मेरे होने की गवाही देंगें खोदना गहराई में कभी मज़बूत नींव के पत्थर मिलेंगे आशाओं के बिखरे आसमान पर सबकुछ धुँधला हो भी जाय तो क्या विश्वास का अटका कोई तारा मिलेगा सोचना कहीं समर्पण कोई गिरकर राहों मे बिछते कुछ पत्ते मिलेंगे आशान्त पड़े समुन्दर से मन मे सब कुछ छिन्न भिन्न हो भी जाय तो क्या आस का तैरता कोई जहाज़ मिलेगा उड़कर थक जाओ जब कभी नीचे सहारा देने को कुछ पाल मिलेंगे
बताने को तो तजुर्बा भी था जताने को अहसास भी था ये स्नेह तब तक ही सच्चा था जब तक सबकुछ एकतरफ़ा था छुपाने को ख़ुशियाँ भी थी कहने को कहानियाँ भी थी ये शाम तब तक अपनी थी जब तक कभी रुलाती न थी बाँटने को तो यादें भी थी लिखने को थोडे ग़म भी थे ये क़लम तबतक ही अपनी थी जब तक कभी चली न थी
दीपदान जब मन का हो त्याग समर्पण मन का हो मन जायें यादों के उत्सव प्रकाश पुंज जब मन का हो कुंज गली जब मन में हो गोकुल बरसाना मन में हो उग जाये सपनों के जंगलों आस अहसास जब मन मे हो शाम सुहानी घर में हो बात पुरानी घर में है हंसतीं हों कोने मे यादें आशीष कहीं पर घर में हो
लौट आयी हैं कहीं फिर वो खामोश शहर की बहर भिगोता है कोई नैपथ्य से साथ लिए बरसात की लहर किताबों के सूखे फूलों पर वो ख़ुशबू आयी है निखर लिखता है कोई चुपके से साथ लिए यादों का असर रास्तों मे बिखरी शामों पर परछाईं फैला चुकी है क़हर हवा में उड़ी है आशाये तबसे तेरे लौटने के हर पहर पर