शहर की बहर
लौट आयी हैं कहीं फिर
वो खामोश शहर की बहर
भिगोता है कोई नैपथ्य से
साथ लिए बरसात की लहर
किताबों के सूखे फूलों पर
वो ख़ुशबू आयी है निखर
लिखता है कोई चुपके से
साथ लिए यादों का असर
रास्तों मे बिखरी शामों पर
परछाईं फैला चुकी है क़हर
हवा में उड़ी है आशाये तबसे
तेरे लौटने के हर पहर पर
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