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कलश

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'बकवासें'

 हम राहों में चलकर ही  यूँहीं एक साथ आये हैं  हजारों हैं मगर इम्तिहान  हम जीतने तो नहीं आये  'कुछ भी' हैं ये 'बकवासें' जो तुझतक जोड़ती मुझको  हजारों हैं मगर सपने  सब सच तो नहीं होंगे  मीलों का सफर मेरा  न होंगी ख़त्म उम्मीदें  सागर से हिमालय तक  सब अपने साथ कब होंगे  ऊचें से कुछ मचानों पर  बना है ख्वाब जीवन का  न गिर कर जी सकूंगा मैं  न अकेले चल सकूंगा मैं  जो है कुछ पास अब मेरे  वोही काफी है जीवन का  न सपने पाके जी पाया   न खोकर जी सकूंगा मैं 

मिलकर तुझसे

 मिल जाना जीवन राहों में  तुझ बिन कोई आस नहीं है  चला पार हूँ सागर करने  नांव उतारे चाप चलाते मैं केवट एक राह निहारे  कब आवोगे पालनहारे  चला बढ़ा हूँ राह अजनबी  मंजिल बिन एक साथ तुम्हारे  सूत्र मनों के बांधें हैं जो  कुछ हैं सूत्र पहनने बाकि  रिश्तों में रंग कौन तलाशे  तेरे रंग में भीग छपकते  मिल जाना जीवन राहों में  तुझ बिन कोई जीवन कैसा   कदम कहाँ अब मुड़ पायेंगें  मिलना खोना संगम तेरे  तु सागर मत्था फिर दोहराता  नदी हिमालय बढ़ आयी है  पाना जीवन सत्य रहेगा  मिलकर तुझसे खो जाना है 

ये तय है

 वो घण्टों की बातों का निष्कर्ष एक ही है  कि भूले न भूलेंगे मनों के रिश्तें ये तय है  मंजिल मिले न मिले  ये अलग बात है  रास्तों के सफर साथ तय होंगे ये तय है  वो रूठना मानना चलना ही है सतत  मनों में बसने वाले दूर न होंगे ये तय है  रिश्तों को नाम मिले न मिले ये और है  रे मन तु पास है  सबसे  ये तय है  कल क्या होगा ये सोच अब आती नहीं   ये खुशियां जीवन संग रहनी है ये तय है  बारिश में भीगे न भीगे ये अलग बात है भावनाओं का समुन्दर उमड़ेगा ये तय है 

नसीबों का खेल

 वो जो अपना है  सदा अराअरी में रहा  भावनाओं का कोई मोल नहीं  वो औरों की तीमारदारी में रहा  वो जो चितचोर है  सदा मुसाफिरी में रहा  शाम से पावड़े बिछाये हैं  वो औरों की टहलबाजी में रहा  वो जो पराया है  सदा अपनों में ही रहा  बरसों सजाते रहे सपने जिनके  वो हमको हर बार बस आजमाता रहा  ये नसीबों का ही खेल है  सदा आधा अधूरा ही रहा  किसी को नसीबों से मिला वो शख्स  जिसे मैं  हाथों की रेखाओ में ढूंढ़ता रहा 

रेखाएं भाग्यों की

 इधर भी जोर लगता है  उधर भी जोर लगता है  ये रेखाएं हैं भाग्यों की  ठहरती कब हैं संग अपने  धड़कती हैं मचलती है  ख़ामोशी में बढ़ती हैं  कैसे हो गिनती यादों की  सांसे कब हैं संग अपने  मिलता है बिछड़ता है  अपनाता रूठ जाता है  ये रिश्ते भी मनों के हैं  कहाँ चलते हैं संग अपने  योजन है आकांक्षा है  अभिलाषा समर्पण की  लाखों ख्वाब आँखों में  हकीकत कब है संग अपने  कभी पाना कभी खोना  जो ठहरा है वही क्षण है   ये रेखाएं हैं भाग्यों की  ठहरती कब हैं संग अपने 

दूर एक छोर

कोई उम्मीद नहीं सिवाय इसके  तेरे मन में रहूँ अजनबी बन सदा  कभी मुड़कर जो देखना पड़े तुझे  उन ख्यालों का एक चेहरा हूँ मैं सदा  विश्वास सुदृढ़ सा हो जाता है तब  जब वो कहता है उम्मीदें मत बांधना  खींचता है एक धुर्व मनों के  वो भी  साथ हों मिल पाएं ये जरूरी कब था  वर्षों की  सीमा तय हैं मन में  कुछ फर्ज निभाने तुमने हमने  उम्मीदों की अजनबी साख पर  देर दूर एक छोर उजाला आएगा 

काफी है

 एक तेरी हंसी काफी है  उन उदासियों के जबाबों को  यूँ तो गम और भी होंगे   बेवज़ह खुश रहने की वजह तू है  एक तेरी छुवन ही काफी है  इन थकावट की रातों को  यूँ तो अहसास और भी होंगे  बेपरवाह चाहते रहने की वजह तू है  एक तेरा होना ही काफी है  इस जीवन के मतलब को  यूँ तो मायने और भी होंगे  बेउम्मीद भी बढ़ने की वजह तू है 

संग जीवन

 वो कहता कम,  जानता सब है  मुझे उसकी जरूरत है  वो ये मानता कब है  मेरे हर अनुनय को  मना कर मान जाता है  मुझे उसकी कमी सी है  वो ये जताता कब है  वो हँसता है नादानी पर  संकल्प पर रूठ जाता है  मुझे संग जीवन जीना है  वो ये जानता  कब है वो सुनता है कहता है  दिनों चुप बैठ जाता है  मुझे हर पल जो कहना है  वो ये सुनता कब है 

देवस्थानम बोर्ड भंग

देवस्थानम बोर्ड भंग करना सरकार की बाध्यता बन गयी थी और ऐसा कर धामी जी ने अपने को थोड़ा शसक्त तो किया है  । खासकर केदारनाथ क्षेत्र में  देवस्थानम बोर्ड भंग करवाने  का श्रेय उसका विरोध कर रहे उन सब युवाओ को जाता है जो बिना किसी लीडरशिप के अकेले अकेले खुद की समझ से अपनी अपनी लड़ाई लड़ती रहे । ये सब वही  युवा हैं जिन्होंने एक नयी राजनीती को जन्म दिया है । खुलेआम सरकार का विरोध करना, जब कोई बड़ा नेता  किसी भी पार्टी का साथ नहीं था तब सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को ठंडा न पड़ने देने, कभी   ठंड में नंगे  बदन तपस्या करना , कभी पूर्व मुख्यमत्री को मर्यादा में रहकर केदारनाथ के दर्शन से रोकना , कभी सतपाल महाराज को मोदी की केदारनाथ यात्रा में शामिल न करवाने के लिए अड़  जाना , कभी दिल्ली से कभी  जयपुर , कभी हरिद्वार तो कभी जोशीमठ, गोपेश्वर , टेहरी से देवस्थानम बोर्ड के विरोध में खड़े ये युवा दिखे तो मन इस बात के लिए जरूर खुश हुआ की ये युवा नयी राजनीती को जन्म जरूर देंगे।  ये जीत उन सब युवाओ की ही  है जिन्होंने राजनैतिक पार्टियों के बंधन से अलग धार्...