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सदियाँ बीत गयी

यूँ लगा कि सदियाँ बीत गयी ज़माने की सारी रीत छूट गयी तेरी चुप्पी डराती रही यूँ लगा कि अपनेपन की छाप मिट गयी यूँ लगा की गलियाँ विरान हो गयी जड़ो से जुड़ी हुई मिट्टी बह गयी  हाँसीयें पर रहा  हरदम यूँ लगा कि सांसे साथ छोड़ गयी यूँ लगा कि फिर कोई साज़िश हुई तटबंन्ध आस की बाढ़ के भेंट चढ़ गयी  शंकाओं मन को झकझोरती रही यूँ लगा कि वो खायी फिर गहरी हो गयी  यूँ लगा कि यादें कही खो सी गयी ‘बन्दगी’ के गीतों की बलि चढ़ गयी  बिष-बीज अंकुरित हुए हैं कही  यूँ लगा कि वो फ़सल फिर हरी हो गयी 

कुछ रह जायेगा

कुछ आयेगा कुछ जायेगा कुछ थमकर बह जायेगा  साथ रहेंगी यादें सारी  रुठने मनाने की कोई बैंठेगा कोई चल देगा  कोई थमकर मुड़ जायेगा  साथ रहेंगीं बातें सारी रुठने मनाने की  कोई कहेगा कोई चुप रहेगा कोई अनजान चला जायेगा  याद रहेंगें पल वो सारे  रुठने मनाने के  कुछ रहेगा कुछ उतर जायेगा कुछ फिका पड़ जायेगा  याद रहेंगे रंग वो सारे रुठने मनाने के

मिठाई

एक मिठाई बँट गयी कुछ कभी छुपाई गयी खाली होते डिब्बे पर कुछ चासनी सी बच गयी एक भोग में चढ़ाई गयी कुछ लोगों में बाँटी गयी जो अपनों को रखी थी  वो शैवाल में बदल गयीं यादों की तरह हैं ये मिठाई कभी मीठी कभी बेस्वाद लगी जो बंटी वो सराही गयी  जो बच गयी वो मन में रही

खाली रहा

पर्वतों के पार से एक  आवाज़ आयी चली गयी चाँद भी ठहरा मिला  और चाँदनी ग़ायब रही  अहसास थे लाखों मगर पर एक डगर खाली मिली  बजता रहा एक ढोल सा  ताल कुछ मिलायी नही प्रवाह अविरल बहता रहा कुछ कभी ठहरा नही  मन्द था प्रकाश फिर भी घुप अन्धेरा छाया नही उम्मीदों के खेत थे हर तरफ  फ़सल स्नेह की उगी नही  नज़रों ने घेरा हर तरफ  वो नज़र टकरायी नही  ख्वाइश जीतने की थी नही पर मन कभी हारा नही 

स्वभाव नही

पहले और आख़िरी के द्वन्द में नही  बाद में, फिर कभी स्वभाव नही  पहाड़ों से लगाव छूटता नही  सहजता  स्वाभाविकता रही  तोल मोल कर हर बात कहना  मेरा स्वभाव नही । रिश्तों और भावनाओं में ठहराव रहा   उनके सन्देशों का इन्तज़ार भी न रहा अपनी सीमायें टूटती नही  लाँघने की कभी ज़रूरत नही  फूँक फूँक कर हर कदम उठाना मेरा स्वभाव नही। हार जीत के बन्धन से मुक्त रहा  हवाओं के उन्माद में तो रहा  पर बयारों के बहाव मे बहा नही  चोटियां पार की है बहुत  पर हर चोटी पर झण्डा फहराना  मेरा स्वभाव नही 

ये साल

कभी खुशी दे गया  कभी आँसू दे गया कभी हार दे गया  कभी जीत दे गया भरोसे के किसी झुरमुट में जुगनु कभी  रोशनी दे गया कभी विश्वासों के ठूँठ जला गया घावों को नासूर तो क़लम को कलमी दे गया   ये साल ऐसी हा कुछ अनमिट यादें दे गया  सुनहरे कुछ पलों मे रिश्तों की नींव रख गया  खाली कोनों में स्मृतियों के चिराग़ जला गया  बड़ों का आशीर्वाद और छोटों का प्यार दे गया कभी सम्मानों की दहलीज़ पर बिठा गया  तो कभी ख़ालीपन के महल दे गया  ये साल कभी दौड़ता लगा कभी ठिठका लगा पाना खोना जीतना हारना इस साल भी रहेगा अपनो सा कोई चेहरा फिर यादों मे रहेगा  शिखर पर लहराती पाताकाओं में  अपनों का हाथ और सर-माथे लहरता अहसास इस साल फिर कोई रंग मन को केशरिया रंगेगा  

ज़िद है

तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं बात कोई निकली ना जाय  मन पर छाया रहा जो हरदम  मन से दूर निकाला न जाये  ख़ामोशी का आलम ये है  बात निकलती लिखी न जाये देख रहें हैं एकटक हम तुम  सब कुछ स्थिर चटक न जाये पहल कहीं से शुरु न होती बात कभी विराम तक न पहुँची  तुम भी तुम रहे हम भी न बदले ज़िद है सबकी अपनापन जताने की 

लाम पर रहे

बदलता तु भी नही  बदलता मैं भी नही  कशिश दोनों तरफ कहता कोई कुछ नही  चल कुछ ऐसा करें की वो जिन्दणी बचे तु तु रहै मैं मै बनूँ  अरमानों की एक याद रहें बुनते सपनों में उलझा  छन्द तारतम्य में न बदला जो पास लगे दूर रहे  मन वाले लाम पर रहे  शहर की बदनाम गली में वो था तो ही रौनक़ सी थी  स्याह सड़कों की शामों पर खामोश ! उदासी डराती रही 

अकेला तो है

यादो मे रहता अजनबी एक शूल सा चुभता है  तिल-तिल सताता तो है पर कभी कुछ कहता नही  जो देखता है मुड़के अक्सर  पर कहीं नज़र मिलाता नही  सोचता वो भी होता होगा  मगर कभी कुछ जताता नही  जो नज़रों मे है हरदम  ज़ुबान मे कभी आता नही  अकेलापन तो उसका भी होगा  साथ कभी कोई देता नही 

अजनबी

दूरियाँ में ख़ामोशी से स्नेह पलता है  ख़ामोशी मे कहीं कोई उन्माद रहता है पहल की कोशिश तेरी  होती नही  सोच तुझसे दूर कहीं जाती नही  गूँगे कब बोल पड़े सूरों की तान पर दुश्मन कब खड़े रहै अपनो के साथ में मनों से दूर  होता नही जो अजनबी  पास जाने की कभी कोशिश होती नही  अपनेपन सोचने को मजबूर करता है  विश्वास सब कुछ थामे से रखता है  जिसने अपनों मे गिना ना ओ अजनबी  रह रहकर सोच को घेर लेता है अजनबी