ज़िद है
तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं
बात कोई निकली ना जाय
मन पर छाया रहा जो हरदम
मन से दूर निकाला न जाये
बात निकलती लिखी न जाये
देख रहें हैं एकटक हम तुम
सब कुछ स्थिर चटक न जाये
पहल कहीं से शुरु न होती
बात कभी विराम तक न पहुँची
तुम भी तुम रहे हम भी न बदले
ज़िद है सबकी अपनापन जताने की
Comments
Post a Comment