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समर्पण सादगी का है

 जी भर बात करता हूँ  हर रोज आईने से मैं  चुपचाप उससे ज्यादा  किसी ने सुना भी तो नहीं  लिख देता हूँ हज़ार ख़्वाब हर रोज़ डायरियों में  खामोश उससे ज्यादा  किसी ने पढ़ा भी तो नहीं  जगता हूँ रात भर  हर रोज़ चांदनी में  एकटक उससे ज्यादा  किसी को निहारा भी तो नहीं  अनगिनत आशाएं मन की  हर रोज़ सपने सजता हूँ  चुपचाप उससे ज्यादा  मन ने किसी को माना भी तो नहीं  बहा है संग दरिया सा  हर रोज़ नहाया हूँ  सरोबोर उससे ज्यादा  किसी के संग भीगा तो नहीं  समर्पण सादगी का है  हर रोज़ एक तपस्या है  ध्यान लगाकर उससे ज्यादा  कुछ माँगा भी तो नहीं 

आप

तुझे बांध कर रख दूँ ये ख्वाईश कब है मेरी,  मैं स्नेह का बधा धागा हूँ मजबूरी का सूत्र नही हूँ मकाम तुझे तय करने हैं मैं मंजिल तक बढ आया हूँ टूटती बिखरती पगड़ंड़ी हूँ तयशुदा रिश्ता नही हूँ.... सफर लम्बा है अपना  कभी डूबता बढ़ता सही आस का क्षितिज तकता हूँ समय की कोई सीमा नही हूँ रेखाऐं ले जाती हैं तुझतक यूँ तो भाग्य का भरोसा नही पाना खोना तुझपर छोड़ता हूँ छोड़ दूँ जिद ऐसा बचपना नही हूँ

जमीं मेरी

 दरकता सा पहाड़ हूँ  खिसकती सी जमीं मेरी  बहूँगा संग नदिया रे ! मेरा अस्तित्व ताखे है  हिमालय से रहे सपने  पिघलती सी जमीं मेरी  चमकूँगा संग रौशनी रे ! मेरा रोशन अँधेरा  है  बढ़ता सा शहर हूँ मैं  घटती सी जमीं मेरी  जानूँगा संग दर्पण रे ! मेरा धुँधला सा दर्शन है  छिटकती शाम सेहरा की  ढलती सी जमीं मेरी  अपनाऊँ संग समर्पण रे ! मेरी पहचान तुझ तक है 

रूह की गाँठ

 कुछ अनजान रिश्तों में  रूह की गाँठ होती है  वही फेरे चुपचाप होते हैं  वहीँ सिन्दूर रचती है  कुछ फैले से सामान में  चीजें अनमोल होती हैं वहीं मन चुपचाप मिलते हैं  वहीं प्रणय की रात होती है कुछ अनकही सी बातों में  समझ गहरी सी होती है  वहीं सूनापन सा रहता है  वहीं तेरी कमी सी रहती है  कुछ अपठित शिलालेखों में  दुनिया दबी सी होती है  वहीँ एक कारीगर होता है  वहीँ एक सोच जगती है  कुछ सुनसान राहों में  मंजिल अज्ञात होती है  वहीं अपनापन सा होता है  वहीं एक शुरआत होती है  चलाचल सफर में राही मुझे दुनियां बसानी है  मैं जीवन भर तकूँ जिसको  वहीं मंजिल बनानी है

बहूँ संग में

 लहरों  से अपनी लौटकर आ  मैं बिखरा हूँ रेती किनारे तेरे  आगोश में ले भींगो ले मुझे  मैं कण कण बिखरता बहूँ संग में  खुशियों से अपनी सिमटकर के आ  मैं फैला हूँ गठरी को खोले तेरे  आगोश में ले समाकर मुझे  मैं पल पल सिमटता रहूँ संग में  जड़ों से अलग तू खिसककर के आ  मैं जमता हूँ मिट्टी पकडे तेरे  आगोश में ले छुपाकर मुझे  मैं क्षण क्षण रगंता रहूँ संग में  शाम ओ शहर रात कटती नहीं  कदम दर कदम इस सफर संग में 

बूँदें

बादलों का झुण्ड़ एक सन्देश लायेगा बरसात न जाने क्या आस जगायेगी सूनो! जरा छतरियाँ हटा के मिलना उनसे वो जो बूँदें हैं न मेरा अहसास दिलायेंगी हवाऐं चुपचाप कुछ कह जायेंगी छज्जे में बैठी मल्हार छू जायेगी  सूनो ! गाड़ियों के शोर का सुनना एकटक कोई शब्दभेदी आवाज मेरी याद दिलायेगी रात के आगोश में थाम लेना बाहें आज चढती सी सांसे सब बयां कर जायेगी  सूनो! आहिस्ता से व्यक्त करना उत्ताप कोई दशा कशक भरी मेरा मनन करायेगी 

बाबा

बाबा मैं तुम जैसा ना हो पाया त्याग समर्पण जीवन दर्शन सफर शून्य अविवेक अकिंचन  कोशिश की न कर पाया  बाबा मैं तुम जैसा ना हो पाया बच्चों का आदर्श न बन पाया बीबी की शान न बन पाया  मानक नही किये स्थापित  सपनों को न सजा पाया  बाबा मैं तुम जैसा ना हो पाया खुद से भी न लड़ पाया  जीवन की ड़ोर न कस पाया सार्थक कर्म दिशाहीन रहे सच का साथ न दे पाया बाबा मैं तुम जैसा ना हो पाया

मन के पार

पहले मन के पार गयी फिर सपने सजा गयी मेरी बनकर मुझसे लिपटी नजर मिलाकर चली गयी घर की देहरी सजी मिली आंगन छज्जा धुला मिला कोने बैठें बाटी खुशियां  हाथ मिलाकर चली गयी चेहरे बोल रहे अपनापन मन की धड़कन तेज रही घबराई थी सांसे लेकिन गले मिलाकर चली गयी सुर्ख हुए होठों की भाषा छूकर स्नेह उड़ेल गयी देकर अपना मनतन सब मुझे जीतकर चली गयी

निशां

गहराती एक इबारत को एक नया अंजाम दे आया मैं मन को छोड़ आया हूँ और खुशबू संग लाया हूँ अधूरी सांस रख दी थी उत्ताप धड़कते सीने पर समेटी पखुड़ियां कोमल  और निशान संग लाया हूँ घरों को एक कर बैठै कोने अहसास रख आया लगाया है गले उसको और यादें सग लाया हूँ

ठहर जा साथ

 समर्पण है तेरा मुझको  मैं संकल्पो से बँध आया  तु नदिया साथ बहती सी  मैं समुन्दर ठौर कर आया  ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे   मैं दरिया पार करके  ही निकल जाऊँ चाहत है तेरी मुझको  मैं भरोसे बाँध आया हूँ  तु मंजिल साथ रहती सी  मैं सफर में कौल कर आया  ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे   मैं पताका पीट करके ही निकल जाऊ  उम्मीदें हैं बंधी तुझसे  मैं रातों जाग आया हूँ  तु उजाला शाम जगमग है  मैं अँधेरा चिर कर आया  ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे   मैं जीवन जीत करके ही निकल जाऊ