आप
तुझे बांध कर रख दूँ
ये ख्वाईश कब है मेरी,
मैं स्नेह का बधा धागा हूँ
मजबूरी का सूत्र नही हूँ
मकाम तुझे तय करने हैं
मैं मंजिल तक बढ आया हूँ
टूटती बिखरती पगड़ंड़ी हूँ
तयशुदा रिश्ता नही हूँ....
सफर लम्बा है अपना
कभी डूबता बढ़ता सही
आस का क्षितिज तकता हूँ
समय की कोई सीमा नही हूँ
रेखाऐं ले जाती हैं तुझतक
यूँ तो भाग्य का भरोसा नही
पाना खोना तुझपर छोड़ता हूँ
छोड़ दूँ जिद ऐसा बचपना नही हूँ
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