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अहसासों की रात

अहसासों की रात  जिन्दा है मन में खुद से खुद की मुलाकात  घर कर गयी है मन में समर्पण की सादगी बात कह गयी मन में तुम से हम की पहचान एक कर गयी मन में अधजगी सी अपनी रात सूत्र एक पिरो गयी मन में कहनी थी हर जो बात वो कह कर गयी मन में  रंगों से सजी धजी रात  आत्मसात करा गयी मन में रचनी थी जो हर एक बात वो शब्दों को बाँध गयी मन में कविता रची कहानी बन गयी क्यारी सी खिला गयी मन में अपना सब कुछ मुझे देकर  वो खुद भी समा गयी मुझमें 

फिर समर्पण

 होंठ चुप थे आखें बंद थी  वो चेहरा कहानी कह रहा था  बाजुओं में बेसुध बिखरे थे बाल  समर्पण एक बानगी फैला रहा था  बेसुध था उत्ताप तनो का  मन में कुछ रच बस गया था  मद्धम सांसें कुछ कह रही थी  समर्पण एक कहानी लिख रहा था  स्पर्श हर ओर था शान्ति को समेटे  अहसास मन रंग भर रहा था  पास बुला रही थी सादगी चेहरे की  समर्पण स्नेह की फुलवारी सजा रहा था 

किरण

 चमकता है तू जग रौशन  किरण है तु उम्मीदों की  नया सा एक जहां अपना  बसा ले एक जमीं अपनी  आ मिल जाय एक हो जा  संगम एक नदिया सी  बहेंगे संग मीलों तक  समुंदर राह जीवन की  वो जो पदचाप छोड़े हैं  छोरों पर समुन्दर के  किसी एक शाम लौटेगा  वो सपनो का शहर बनकर  हकों के रास्ते तय कर  चले हैं जिस डगर पर हम  कोई सुबह तो आएगी  आशाओं की किरण बनकर 

संग मिलाना है

 कोशिशें हार भी जाय  तब भी मैं कोशिश करूंगा  या तुझमे खो जाऊँगा  या तुझसे लिपट जाऊँगा  फिर रहा था अपनी तलाश में  मुझसे मेरा मिजाज अब मिला  या पाना है बस  तुझको  या तुझसे लिपट जाना है  वो जो सांसों में रहता है  मन का एक शिवाला है  या तो पाना है उसे  या पूज लेना है  ढूंढा है जिसे सदियों  वो मन के अंदर ही मिला  या तो संग मिलाना है उसे या उसमे खो जाना है 

अब भी स्नेह है

 दो पहलू हैं दो छोर हैं  विकल्प हैं या जरूरी नहीं हैं  असमंजस की खींचा तानी  परवाह नहीं है या विश्वास है  शुरुआत तुझसे हो कि मुझसे हो  भावनाओं के लिए ये जरूरी नहीं है  चुप था कि तब भी स्नेह था  कहना है सब कुछ कि अब भी स्नेह है  अभिमान नहीं खुद का भरोसा है तुझपर  व्यस्तता तुझतक है मुझसे नहीं  खुली किताब हैं राज मन में नहीं  जताया तो स्नेह है गुस्सा हैं वो भी स्नेह है 

संवाद

 तेरे और मेरे बीच में  शब्दों का संवाद है  मैं लिख हूँ तु पढ़ लेता है  अहसासों का एक संवाद है  भावों में बसता है जीवन  आखर कहते रहते है  मैं जता लेता हूँ तु सुन लेता है  अपनेपन का एक संवाद है  मनों में विश्वास पलता यादों में हरपल रहता है  मैं मना लेता हूँ तु मान जाता है  रिश्तों का एक संवाद है  तेरे मेरे बीच में  अनोखा सा संवाद है  चुप मैं रहता हूँ चुप तु रहता है  मौन का मौन से संवाद है 

छाँव का विस्तार

 यूँ तो हो तुम साथ में  आवाज़ में अहसास में  हर वक़्त है कब हाथ थामे  यूँ सदा हैं आस में  हम सदा संगम पे मिलती  एक कोई नदिया रहें  मैं नाव सा ठहरा मिलूंगा  जीवन नदी संग बह चला  यूँ तो तुम हो पास में  हर साँस में अंदाज में  मैं खेत की एक मेढ़ पर  एकटक बिजूका रह गया  हम पथिक हैं साथ में  कुछ शाम यूँ चलते रहें  मैं छाँव का विस्तार फैलूँ  तू मेरा सूरज रहा 

तुमसे है

खोना पाना तुमसे है  स्नेह समर्पण तुमसे है  जगती रातें बहती शामें चलती सांसें तुमसे हैं लिखना पढना शब्द ये गढना सार समर्पण तुमसे है कहती कविता हंसती बातें मिलती सांसें तुमसे हैं  रोना खोना तुझसे है साथ समर्पण तुमसे है दिन बीता जो साथ अकेले यादें सांसें तुमसे हैं  हाथ हथेली तुमसे है बेखुदी समर्पण तुमसे है हाथ पसारे बाँहें भींचे जिन्दा सांसें तुमसे हैं 

फ़िकर

 हम समय को साथ बाँटें ये कहाँ मुमकिन सदा  याद हो मन साथ कोई ये छुपा रहता कहाँ  यूँ तो होंगे काम कुछ हर दिन मिला जाता कहाँ  एक है अहसास गहरा संग बहता सा लगा  हम नदी सा अब निकलकर छोड़ आये हैं पहाड़  रास्ते बहते लगे पर है समुन्दर वो कहाँ  यूँ तो हमको मंजिलों की अब फ़िकर रहती कहाँ  साथ है अहसास तो तू साथ अपने हैं सदा  हम सफर में साथ हैं बढ़ते रहे राहें सदा  आस के कुछ बीज पनपे हैं कलश में यूँ सदा  यूँ तो तो हमको रूठना और यूँ मानना है सदा  एक है गहरा निशा जो साथ देगा यूँ सदा 

एक तस्वीर

 तस्वीर जो तेरी मेरी मन छाप घर करके गयी  एक समर्पण बानगी  एक साथ में ठहरा गयी  हों युगल समवेत से  मन उतरकर जो रही  बाँह जो थामी रही  एक मकां छत सी लगी  जो सदा पूरक लगे  वो साथ क्यों चलते नहीं  टेक कर सर रख गयी  और मन की कविता बन गयी  है यही निश्चय सदा  बे झिझक जीना बंदगी  दे करके यूँ सांसे सभी  मन जित करके रह गई