एक तस्वीर
तस्वीर जो तेरी मेरी
मन छाप घर करके गयी
एक समर्पण बानगी
एक साथ में ठहरा गयी
मन छाप घर करके गयी
एक समर्पण बानगी
एक साथ में ठहरा गयी
हों युगल समवेत से
मन उतरकर जो रही
बाँह जो थामी रही
एक मकां छत सी लगी
जो सदा पूरक लगे
वो साथ क्यों चलते नहीं
टेक कर सर रख गयी
और मन की कविता बन गयी
है यही निश्चय सदा
बे झिझक जीना बंदगी
दे करके यूँ सांसे सभी
मन जित करके रह गई
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