फिर समर्पण

 होंठ चुप थे आखें बंद थी 
वो चेहरा कहानी कह रहा था 
बाजुओं में बेसुध बिखरे थे बाल 
समर्पण एक बानगी फैला रहा था 

बेसुध था उत्ताप तनो का 
मन में कुछ रच बस गया था 
मद्धम सांसें कुछ कह रही थी 
समर्पण एक कहानी लिख रहा था 

स्पर्श हर ओर था शान्ति को समेटे 
अहसास मन रंग भर रहा था 
पास बुला रही थी सादगी चेहरे की 
समर्पण स्नेह की फुलवारी सजा रहा था 



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