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रहे न रहे

कसौटी पर खरा उतरूं न उतरूं कोशिशों का दौर जारी है मन होता नहीं की थक जाऊँ उम्मीद इसकी भी है उसकी भी कहीं पहुँच सकूँ या न सकूँ कदमों का चलना जारी है मन होता नहीं कि रुक जाऊँ मंजिल इसकी भी है उसकी भी मनाना रूठना रहे न रहे किसी कोने में कुछ तो है मन होता नहीं कि भूल जाऊँ आस मेरी भी है उसकी भी

वो किरण

वक़्त तो मिजाजी था कब किसका हुआ  कल तेरे साथ था  अब पराया हो गया  बदलता पन्ना कब रहा कहानी के कथानक में पहले चित्र उभरता था अब परछाईं रह गया  यादें कब किसकी हुई जीवन की दौड़भाग में  पहले हरदम मुँह में था  अब मन में अकेला रह गया  तु भी मेरे पहाड़ों सा है मन मे है पर दूर ही रहा हिमालय की वो  किरण जहाँ रोशन तो कर गयी 

दो छौर

वो दीवार पर चिपका रहा  कि पत्थर ही बन गया हो  अमूर्त सीने की वो धड़कन  साँसों की गहराई नापती है  वो नज़र झुकाये ही रहा  कि मूर्ति सा बन गया हो  काँपते अधरों की बैचेनी  सदियों के इन्तज़ार सी है  वो दूरियों मे ही सदैव रहा  आँखों या अपनेपन की हों निहारती पलकों की थकन उस नदी के दो छौरों सी है 

जब सोचना

जो बैठकर सामने  रोया था कभी  अब अकेले में  सिसकियाँ लेता होगा स्नेह और सम्मान की  कुछ बातें तो होंगीं  जिन्हें अकेले में सोचकर  गुनगुनाता होगा  वो जो झूठ सच के जालों मे उलझा रहा हरदम जब अकेले में  अब सोचता होगा चुभी तो होंगी कुछ बातें कुछ मन मे घर कर गया होगा भूले बिसरे ही सही होंठों पर कुछ हँसीं लाता होगा 

तु जैसा है

तु श्याम रंग ही अच्छा है  मन पर चढ़ सा जाता है  धवल चाँदनी से धूमिल  श्वेत चमक चौन्धियाता हैं  तु दीप जलाये ही अच्छा है रास्ता सच्चा दिखलाता  है  झूठ की बुने लाखों जालों में बस पाक पवित्र सा लगता है  तु जैसा है वैसा अच्छा है  सीमित शब्द सा लिखता है  गुमसुम तेरे स्पष्ठ संन्देशो में  कुछ अपनापन सा लगता है   

तु है ही

तु कविता और गीतों में तु मन मन्दिर के दीपों में शाम सुहानी तुझसे है शहर उजाला तुझसे है  यादों में बसता अपनापन तु दीवाली की ख़ुशियों मे है  तु मुक्तक का अन्तिम शब्द तु सार मेरी कविता का है  छन्दों का सुरमय तालमेल तु अकेलेपन का साहस है  साथ चलती  तेरी यादें   तु सब अपनी  सासों मे है 

शेष है

कुछ यूँ भी होते हैं  जिससे दूर या पास मायने नही रखता  सड़क लम्बी होती है हाथ छूने की उम्मीद देखने की लालसा अन्त सा होता है सब फिर भी कुछ ख़त्म नही होता  यूँही मनो के पास बसता है  लगाव कही नही होता जुड़ाव अपनेतक रहता है रिश्तों का कोई नाम नही भरोसा फिर भी लगता है ख़्याल हँसी बिखेरता है मनन खामोश कर जाता है लालिमा स्नेह की ओढ़नी मे ख़त्म होने पर आ भी जाय पर सम्मान मन से रहता है 

क्यो सजाऊँ

वो पहाड भी तो पास नही  आसमां ने भी तो ढका नही  कलकल के कौतुहल की शान्ति ख़ाली बाज़ारों में ढूँढता कहा है  जो घर किये है मन में हरदम  उसके लिए सपनों के महल क्यों सजाऊँ फिर एक ख़्याल क्यों ने तेरी सब तस्वीरें सम्भाल लूँ  यादों की माला बना लूँ  फिर मन याद दिलाता है  जो रहता है उसमें हरदम  उसको तस्वीर में क्यों देखता जाऊँ   

रोशन चिराग

मेरी उम्मीदों के पंख उगें न उगें हवाओं के रुख का इशारा ही काफी है मंजिलों की तलाश में कुछ रोशन चिराग ही काफी हैं फसलें आशाओं  की उगें न उगें बीज के जमने असर ही काफी हैं बढ़ने की छोटी सी तलाश में ठूँठ का सहारा ही काफी हैं कुछ कर  सकें न कर सकें कोशिशों का सिलसिला ही काफी हैं हताश हाथ पर हाथ धरे न बैठें प्रयासों में गिर भी जाएँ तो काफी हैं 

घोंसला

रेत पर जो बनाये हैं हमने महल तोड़ आये वो नादां जोड़े बहर  कश्तियों पर उतारे थे सपने बहुत  माँझी मन का दरिया में दगा गया  उंचे उड़के बने थे ख़्वाब अपने पंतग  मांझा पकड़े रहे डोर छूटी मगर  ख़ाली घरों  में आवाज़ दी थी बहुत लौटकर अपना स्वर ही सुनायी दिया  उन रास्तों पे बिखरे मिले फूल कुछ समेटे बग़ैर नफस उडाकर ले गयी  मन की उम्मीद परवान चढ़ती रही तिनके का घोंसला वो बना ही नही