क्यो सजाऊँ

वो पहाड भी तो पास नही 
आसमां ने भी तो ढका नही 
कलकल के कौतुहल की शान्ति
ख़ाली बाज़ारों में ढूँढता कहा है 
जो घर किये है मन में हरदम 
उसके लिए सपनों के महल क्यों सजाऊँ

फिर एक ख़्याल क्यों ने तेरी
सब तस्वीरें सम्भाल लूँ 
यादों की माला बना लूँ 
फिर मन याद दिलाता है 
जो रहता है उसमें हरदम 
उसको तस्वीर में क्यों देखता जाऊँ 
 


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