जब सोचना
जो बैठकर सामने
रोया था कभी
अब अकेले में
सिसकियाँ लेता होगा
स्नेह और सम्मान की
कुछ बातें तो होंगीं
जिन्हें अकेले में सोचकर
गुनगुनाता होगा
वो जो झूठ सच के
जालों मे उलझा रहा हरदम
जब अकेले में
अब सोचता होगा
चुभी तो होंगी कुछ बातें
कुछ मन मे घर कर गया होगा
भूले बिसरे ही सही
होंठों पर कुछ हँसीं लाता होगा
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