तु जैसा है
तु श्याम रंग ही अच्छा है
मन पर चढ़ सा जाता है
धवल चाँदनी से धूमिल
श्वेत चमक चौन्धियाता हैं
तु दीप जलाये ही अच्छा है
रास्ता सच्चा दिखलाता है
झूठ की बुने लाखों जालों में
बस पाक पवित्र सा लगता है
तु जैसा है वैसा अच्छा है
सीमित शब्द सा लिखता है
गुमसुम तेरे स्पष्ठ संन्देशो में
कुछ अपनापन सा लगता है
Comments
Post a Comment