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हस्ती मेरी

 मुझे बोने होते हैं जब  मैं यादों के बीज बोता हूँ  रहे न रहे हस्ती मेरी  मैं पौध आस उगाता हूँ  मुझे रोना होता है जब  मैं खुद को भूल जाता हूँ  रहे न रहे बस्ती मेरी  मैं क्यारियां सजाता हूँ  मुझे पाना होता है जब  मैं तुझको याद करता हूँ  रहे न रहे तू संग मेरे  मैं सपने खूब सजाता हूँ  मुझे हसना होता है जब  मैं तेरे साथ रहता हूँ  रहे ने रहे सांसे सदा  मैं संग तेरे जी जाता हूँ 

अंजुरी भर आकाश

 अंजुरी भर आकाश उठा लूँ ख़ाली सी हथेली पर  तू मेरी परछाई बन जा  सुनसान सी ख़ाली राहों पर  मद्धम से कुछ दीप जला लूँ  घर के सुने कोने पर  तू मेरी अंगड़ाई बन जा  जगती सुबह शामों पर  थोड़े से कुछ बीज छिटक लूँ  ख़ाली हुए से गमलों पर  तू मेरी आशा बन जाना  उगती कोमल कोपल पर  आ आलिंगन थोड़ा कर लूँ  सांसों की उस खुशबू पर  तू मेरी होकर मुझ में घुल जा  बहती  सरिता जीवन पर 

गुड़ सी मीठी

वो चासनी सी मीठी है वो गुड़ की भेली सी भी है ईख के खेतो हरी भरी वो पूरी चीनी मिल सी है वो लौकी बैल सी कोमल है वो कोपल नई नई सी है मां के आंगन की तुलसी वो पूरी ही फुलवारी है वो सूरत की भोली है वो मूरत की भाली सी भी है गुस्से की लाल कुमुद सी वो मिर्चों की आगनबाड़ी है वो सर्द हवा का झौंका सा है गरम लू के थपेड़े सी भी है सावन का श्रींगार सी है वो जीवन हवा बासंती है

मंजिल तुम तक

 सबका अपना एक ही निश्चय  जीवन को खुशियों से भरना  इन क़दमों की मंजिल तुम तक  आहट सांसों बंधी है तेरी  भेंट लगाना गले लगाकर  इस तन की सब तपन है तेरी  सबका अपना एक ही सपना  मार्ग प्रशस्ति जीवन रखना  इस जीवन की मंजिल तुम तक  इंतजार मन मूरत तेरी  बाहें भींच के जकड सा जाना  ये मन अटका साख पे तेरी  सबका अपना एक ही जपना  हंसी ख़ुशी को साथ में रखना  इन खुशियों की मंजिल तुम तक  ठिठके कदम उस सूरत तेरी  झलक देखकर जड़ सा जाना  ये जग समता सीमा तेरी  आँखे कहती इंतजार था  बाहें गूढ़ता समां रही हैं  सांसो का सरपट सा दौड़ना  एकटक एकपल थमता जीवन  जानता है मन सब  बातें ये जीवन पहचान तुम्हारी 

तुम समय नहीं दे पाये

 कुछ गीत रचे हैं ऐसे  जो न तुम पढ़ पाये कहनी थी बात हज़ारों  तुम समय नहीं दे पाये  कुछ ख्वाब अधूरे छूटे  जो मन से छूट न पाये  कुछ बुने हैं रिश्ते ऐसे  शब्दों में न गढ़ पाये  मिलना था साथ तुम्हारे  तुम समय नहीं दे पाये  असहास धरे ताखे पे  जो मन से दूर न जा पाये  कुछ सपन सजोये ऐसे  सच की राह न पाये  पाना है साथ तुम्हारे  तुम समय नहीं दे पाये  रूकती  सांसे जीवन  जो मन के पार न हो पाये 

वो तु ही है

 वो तू ही है जो दर्द है अपनापन है  कमी है मन का शुकूं भी है  अँधेरे का रोशन दीया ढलती शाम का सहारा है  उम्मीदों के आसमान पर  चमकता सा सितारा है  और एक बात कहूँ  तू है सर का दर्द मेरा  तू ही है जो किताबों में है  आखरों में है शब्दों में है  पहाड़ों से समुन्दर में है  भावनाओं में कल्पनाओं में है  अधूरे से कुछ सपनों में है  साँस लेते हुए रिश्तों में है  बनते मकां और  उजड़ते विश्वाश में है  और एक बात कहूँ  तू भूत सी जगती रातों में है वो तू है जिससे नाराजगी सी है  वो तू ही है जो अपनेपन में है  मनाना है तुझसे रूठना है तुझसे  आस में तू विश्वास में तु चलती हुई सी सांसों में तु  बसती सी बस्ती है  उजड़ती ही हस्ती है  और एक बात कहूँ  तु जिन्न सी मेरी सांसों में है  वो तु ही है जो हमसफ़र है  रुलाता है हसाता है  पहाड़ों का इंद्रधनुष  और रेगिस्ता  सी मृगतृष्णा है  दुनिया में सबसे खास मन का अभिमान है तु  लड़ूँ तो चैन नहीं न मिलूं तो शुकूं नहीं ...

सोचकर स्नेह

 होती नहीं तय मंजिलें  कुछ रास्ते दिखते नहीं  ये सोचकर स्नेह  कभी कम हो नहीं सकता हो  बात तानों की  या नाराजगी साथी  ये सोचकर स्नेह  कभी चुप रह नहीं सकता  हो बात लम्बी सी  या गुमशुम रहे साथी  ये सोचकर स्नेह  कहीं खो नहीं सकता  हो रात मिलन की  या मन बिछड़ चलें साथी  ये सोचकर स्नेह  कभी मर नहीं सकता  हो समय साथ चल लो  या जी लो दो भर सही  ये सोचकर स्नेह  कभी दब नहीं सकता 

याद बहुत आते हो

 जब शब्द कम हो जाएँ  और भावना दब जाये  तब याद बहुत आते हो  एकटक देखा जाये  नज़र झुकी जो उठी है  ह्रदय कुलाचें खाये  तब याद बहुत आते हो  जब खुशबू छूकर जाये  घर का कोना खाली कदम रुके न जाएं  तब याद बहुत आते हो  जब रुक जाये परछाई  स्पर्श रहा सहमा सा  कोमलता पास न आये  तब याद बहुत आते हो  जब घोर अँधेरा छाये  रातों रात जगा है  मन खाली दर्पण है  तब याद बहुत आते हो  जब सूनापन लगता है 

ख़ामोशी से

 अहसासों की एक किताब है  तेरे मन में दबी हुई  मैं जब पढ़ता ख़ामोशी से  निशब्द हुआ सा जाता हूँ  रोक रही हैं सांसे  मन तुझ ही जाता है  खुशबू घोल मिली तन में  बादळ सा इतराता हूँ  जादू की एक बानी है  तेरे संग में बही हुई  आलिंगन ख़ामोशी से  बेसुध हुआ सा जाता हूँ  खींच रही हैं बाहें आस तुझी तक जाती है  नदिया समी मिली तन में  कोपल सा खिल जाता हूँ 

अपनेपन का पूरक

 अनदेखी की पीड़ा का एक उदाहरण हूँ  हर पल पर जो तुला गया  उस स्नेह का मापक हूँ  छंदों गीतों को अपठित कविता  अधूरे रिश्तों की परिभाषा हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ  बहती सी एक दरिया का ठौर ठिकाना हूँ  हर पल पर जो भुला गया  उस अहसास का आशय हूँ  रंगों चित्रों की अनदेख पहाड़ी  अधूरे रास्तों की मंजिल हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ  खोटी हुई एक भटकी सी मृगतृष्णा हूँ  हर पल जो तका गया  उस सोच सा सिमित हूँ  शब्दों सोचों की बंधी भावना  अधूरे अपनेपन का पूरक हूँ  तुझमें समता जीवन तेरी सांसों पर जिन्दा हूँ