सोचकर स्नेह
होती नहीं तय मंजिलें
कुछ रास्ते दिखते नहीं
ये सोचकर स्नेह
कभी कम हो नहीं सकता
कुछ रास्ते दिखते नहीं
ये सोचकर स्नेह
कभी कम हो नहीं सकता
हो बात तानों की
या नाराजगी साथी
ये सोचकर स्नेह
कभी चुप रह नहीं सकता
हो बात लम्बी सी
या गुमशुम रहे साथी
ये सोचकर स्नेह
कहीं खो नहीं सकता
हो रात मिलन की
या मन बिछड़ चलें साथी
ये सोचकर स्नेह
कभी मर नहीं सकता
हो समय साथ चल लो
या जी लो दो भर सही
ये सोचकर स्नेह
कभी दब नहीं सकता
Comments
Post a Comment