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जुगनू हूँ

शहर की शाम में   चेहरा गुम है तेरा  साथ है हर वक्त और  जिक्र गुम है तेरा संवादों से परे भी  एक दुनिया है मेरी चुप गुमशुम सी  नाराज जिन्दगी है मेरी अहसासों का अंबार  और यादों की ताबिर है शहर में हल्ला बहुत है  मन बडा खामोश है रौशनी में चौन्धियाना  न आया है मुझे जुगनू हूँ  मुझें अंधेरों का इतबार है

हाथ मेरा पकड़ोगे तुम

 क्या अबके जब फिर बारिश होगी  हाथ मेरा पकड़ोगे तुम  छोड़ के सारी लोक लाज सब  संग मेरे भीगोगे तुम ?  क्या अबके जब फिर घिरेंगे बदरा बाहें भर जकड़ोगे तुम  सुध बुध अपनी खोकर सब  संग मेरे नाचोगे तुम ?  पीली सरसों तीतर बोले  क्या आवाज़ लगाओगे तुम  मिला के सुर में सुर मेरे  क्या मेरे संग गाओगी तुम ?  क्या जब लम्बी कोई सड़क रहे  मेरे साथ बैठोगी तुम  देकर अपना हाथों हाथ  क्या मेरा हाथ पकड़ोगी तुम ?

तरंग

शान्ती तु शुकून तु मेरे मन का हर चैन तु तु स्पर्श है अहसास का तु बन्दगी मेरी सांसो की तुझे देखूँ तो शूकून है तुझे देखूँ तो शान्ती मेरी छूँ लूँ तो तरंग है साथ तु समर्पण भी तु खुशी में तु तनाव में तु जीवन के हर जज्बात में तु पाना खोना रब के हवाले मेरे स्नेह की मर्यादा है तु

छाप

जब मन उड जाये कह जाये चल भीग भी लूँ तु बूँदें बनकर रिमझिम बरखा  या इन्द्रधनुष सा हो जाना आसमां भी दूर रहे  और धरती अम्बर मिल जायें मैं मिट्टी की सौंधी खुशबू  घुलमिल तुझमें खो जाऊ धूल भरी आँधी थम जाये  तरवर मुझको कर जाना लाख लपेटू लेप मै तन पर  तु अपनी छाप लगा जाना

चेतन

जो जन्म नही पर साथ दे गया एक अपना अहसास दे गया रिश्तों का एक बन्धन बाधें  वो हमको तुमको एक कर गया दिन जो भूले  पहर रात के थे अपनी सुधबूध खो बैठें जाते अहसास किया आँखों ने दबा हुआ काजल बह बैठा माँ तेरे तुझमें रूप अनेकों  चेतन अचेतन अहसास हजारों जब वो सब मिलकर याद आता है तुझ पर भरोसा बढ जाता है

दिवाली

ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी याद लायी तु मगर अपनों को नही लायी हर उजाला दीप है बस मनों सन्ताप है कब सजेगी थाल पूजा कब घरों में रोशनी सबके नामों के दीप बस जलते रहे बुझते रहे याद बस मनती रही उत्सव तो खाली रहे हर घरों के द्वार पर एक इन्तजार सा रहा कब आयेगी आहट तेरी कब सफर की मंजिलें घर रहा खाली सदा यूँ सफाई ही रही खुशी तो है बहुत पर कुछ कमी सी रही हर मनों में ख्वाब है उस किरण की आस है कब जायेगा वनवास ये कब सजेगी देहरी ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी

मन तुझ तक

शाम थकी सी लगती है तुझ बिन सुनी लगती है सूरज राहें तकता है ये मन तुझ तक जाता है  चाय अधूरी ठ़डी है कागज कुछ अलसाये हैं  सोच वहीं पसर जाती है ये मन तुझ तक जाता है बच्चों की किताबें हैं  चलचित्र सा जीवन है वक्त वहीं पर ठहर जाता है ये मन तुझ तक जाता है अधूरे से कुछ सपने हैं कम्बल बाँह पसारे हैं आँख वहीं पर लग जाती है ये मन तुझ तक जाता है रात कहीं घनघोर हुई है दो पहर कहीं पर बीत गये है जब बेबस सपने होते हैं  ये मन तुझ तक जाता है

तुमसे

तुमसे मेरे मन की शक्ति   तुमसे मन विश्वास भरा है तुम ही मेरे साथ चले हो  तुम ही मेरे राह की मंजिल तुमसे शंका तुमसे चिन्ता तुमसे गुस्सा प्यार तुम्ही से तुमसे दिन हैं तुमसे रातें  तुमसे सूरज चाँद तुम्ही से तेरे मेरे बीच ना कोई तेरे मेरे साथ ना कोई हम दोनो की राह एक है मंजिल एक सफर एक है आ आलिंगन कर जाते हैं गिला शिकवा भूल जाते हैं तु चूमे माथा लब में छू लूँ चल फिर दोनो घुल जाते हैं

अंश अंश

अहसास किया है मैंने बरखा की बूँदों का रोआँ रोआँ सा देखा है काया के ठहराव का पँखुडियों को छूआ है मन को टटोला है रोम रोम अपना पाया तेरा समर्पण देखा है गुदगुद सी परतों का मैनें रंग बदलते देखा है रूखी साख पर मैंने कोंपल खिलते देखा है निशां दिये हैं कई गर्भित अहसासो पर अंश अंश अपना पाया तेरा स्नेह पाया है

तेरे साथ की

मैं गंगा सा प्रवाह चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे बहना चाहता हूँ हो उत्तुगं शिखर कोई या गहरी सी कोई घाटी मैं तुझमें बस के तेरा होना चाहता हूँ मैं राह-ओ-राह भटकना चाहता हूँ सदा मैं संग तेरे मंजिल चाहता हूँ हो सबसे मुश्किल कोई या आसान सी हो कठिनाई मैं तेरे नाम से तर जाना चाहता हूँ मैं छन्द-ओ-गीत लिखना चाहता हूँ सदा तेरी कहानी का किरदार चाहता हूँ हो अधूरा या वो छोटा ही सही लेकिन मैं तेरे साथ की सम्पूर्णता चाहता हूँ