बात कोई 1994-95 की होगी, इन्ही बरसाती दिनों की जब बस में ऋषिकेश से पहाड़ो का सफर बड़ा मुश्किल सा लगता था. जगह जगह पहाड़ खिसके होते थे और एक दिन का सफर दो दिन का हो जाता था. क्योकि मै ऋषिकेश से बस में बैठा था इसलिए मेरे पास सीट थी, नहीं तो तब पहाड़ी बसों में नेगी जी के " चली भे मोटर चली...." गाने जैसी ही हालत होती थी. थोड़ा पढ़ाई और संस्कारो की वजह से उस दिन मुझे कुछ बार अपनी सीट किसी 'वोडा' या 'बोडी' के लिए देनी पड़ी थी. ऐसे ही बारिस में रुकते चलते बस श्रीनगर से आगे बढ़ी , वही कही सड़क किनारे से बारिस में 'खतखत' भीगी कोई लड़की बस में चढ़ी. बरसात में बुरी तरह भीगी और ठंड से कपकपाती लड़की को में अपनी सीट दे दिया . उस शौम्य से शरारती चेहरे वाली लड़की से उसका छोटा सा छाता पूरी तरह से बंद नहीं हो रहा था तो वो छाता उसने हमे पकड़ा दिया और मैंने जैसे तैसे उस छाते को बंद कर दिया. बारिस में पूरी तरह भीगी लड़की, बुरी तरह ठंड से काँप रही थी तो मैंने अपना हल्का पतला जैकेट उतारकर उसे दे दिया और उसने भी बिना किसी ना नुकुर के उसे पहन लिया. तब करीब दो घटे के उस सफर ...
छात्र कल्याण: केवल शब्द नहीं, एक वास्तविक जिम्मेदारी आजकल की शिक्षा व्यवस्था में "छात्र कल्याण" एक प्रमुख विषय बन चुका है। यह प्रयास किया जाता है कि विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, उन पर कोई मानसिक या शारीरिक दबाव न डाला जाए और उन्हें जबरदस्ती किसी चीज़ के लिए विवश न किया जाए। शिक्षा संस्थानों का प्रयास होता है कि विद्यार्थियों के साथ सदैव संवेदनशील, सहायक और सम्मानजनक व्यवहार किया जाए। छात्र कल्याण का तात्पर्य है विद्यार्थियों का संपूर्ण मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक और शैक्षणिक स्वास्थ्य । यह इस बात का संकेतक है कि विद्यार्थी विद्यालय में कितने सुरक्षित, समर्थित और प्रेरित अनुभव करते हैं, तथा वे जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना किस प्रकार करते हैं। भावनात्मक कल्याण के अंतर्गत विद्यार्थियों का भावनात्मक रूप से संतुलित, खुश और आत्म-सम्मान से परिपूर्ण होना आवश्यक है। उनमें तनाव, भय या चिंता से निपटने की क्षमता होनी चाहिए और जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण विकसित होना चाहिए। सामाजिक कल्याण यह सुनिश्चित करता है कि विद्यार्थियों के सहप...
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