रंग

सीधे पेड़ों को अक्सर गिरते देखा
सुखे जंगलों की आग को फैलते देखा  
बरसाती गदेरे का शोर 
और झिंगुर की आवाज़ 
फिर भी इन सब मे एक रंग देखा 
...........
चढ़ते पहाड़ों पर झुका हूँ हरदम  
चमकीले बर्फ़ मे आँखों को धुँधला किया है 
अपनो के दर्द ने सहमाया है मुझको
तु ही है जो बेरंग बना बैठा है दोस्त! 
वरना पत्थरीलें पहाड़ों मे इन्द्रधनुष देखा है हमने..

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता