स्वीकार है
तेरी नाराज़गी स्वीकार है मुझे
तेरा उदास चेहरा परेशान करता है
जीतने की ज़िद मुझे नहीं है दोस्त!
तेरी असहजता ख़ुद को नज़र मे गिरा देती है।
मैंने बेड़ियों मे नहीं बाँधीं है सीमाऐं विश्वासों की
न रिश्तों की लकीरें यूँ अदृश्य हो
तु स्वछन्द उड़े दूर गगन तक वो पंख बन सकूँ
तेरा दायरे मे मेरे ज़िक्र न हो वो बात बन सकूँ
Comments
Post a Comment