अन्तरमन का सत्य
हर शाम घर की छत पर मैंने
ध्रुव तारे को देखा है
निश्चय किया है जीवन जिसने
उस मिट्टी को सींचा है
मेरे लोग जुड़े यूँ इस कारवाँ मे
सर्वस्व उन्हें लुटाते देखा है
कुछ मौक़ापरस्त मुसाफ़िरों को
जीवन मे लंगर डाले झेला है
पर मन अपने से कब झूठ कहा है
ना माँगी मन्नत तेरी मन्दिर-मस्जिद
फिर भी अन्तरमन मे सत्य बसा है ।
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