तु
तु मृगतृष्णा है जीवन की
तु धुनि त्रिजुगीनारायण है
तु अखण्ड ज्योत है बाबा की
तु मन की पावन गंगा है
तुझ पर जो विश्वास बना है
तेरे लिए जो सम्मान रहा है
तु सबको लेकर दूर खड़ा है
फिर भी तुझसे एक रिश्ता जुड़ा है
हो अखण्ड वो कब टूटा है
सम्मान कभी नहीं मरता है
मन के सहज रिश्ते जो है
वो विश्वास कब मैंला हुआ है
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