तुझे मानना भी क्या

उम्र के इस पड़ाव पर
एक ठहराव बनकर आया तू
साथ था तू ये बहम था मेरा
फिर भी हर वक़्त साथ सा लगा तू

तुझे पाना खोना भी क्या
और तुझे मानना भी क्या
जो तु मन मै रहता है हरदम
तो तुझे जीतना और दिखाना भी क्या

यकीं है कि तुझे अहसास तो होगा
फिर दुःख क्यों हो कि तु दूर खड़ा है
बस अफ़सोस तेरी मुस्कराहट को
खोने का है .......................

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