मध्यस्थ



वो जो बने रहे मध्यस्थ तुम्हारे और हमारे बीच
वो बीज बो गए शंकाओ के यहाँ भी वहाँ भी  
ये अलग बात है तेरी नज़रो पर गया हूँ जब -तब  
नाराज़गी ही सही पर अपने लिए सम्मान पाया..
..........................

बाघम्बर ओढ़े ढोंग करना न सीखा है कभी 
खुला पन्ना रहा जीवन पढ़ सके तो पढ़ लेना 
यहाँ रिश्ते सम्मानों के हैं किसी लालशा के नहीं 
शंकाओ के अवरोध गिरने ही है एकदिन .......

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता