ये बताना
तेरे ही लिए तो यहाँ सम्मानों के शिखर थे
बुग्यालों के मखमली घासों के ग़लीचे थे
कभी मन करे तो ये जरूर बताना
क्या था मुझमे जो इतना न पसंद था?
तू ही तो यहाँ मन के सबसे करीब था
नज़रों मै था और अपनों मै सा था
कभी पूछकर अपने मन को ये जरूर बताना
की वो विश्वासों की डोर कमजोर कब हुई थी?
माना कि मेरे स्वभाव या इन कविताओं का दोष होगा
या बार बार के उन फूलों और पहाड़ो के चलचित्रो का,
कभी मन करे तो अभिमानी काटों के तारों को लांघकर
ये बताना कि तेरे सम्मान की सरहदों को मैंने लांघा कब था?
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