तेरा मेरा गरुर

कभी चुपचाप सोचेगा

तो रंजिशें भुला देना

सफ़र जो ख़त्म होने को है

मैं साज़िशें भुला दूँगा 

यादें भी ख़त्म होंगी बातें भी

मोहलत जो साँसों की 

ये सब उसकी कारगुज़ारी है 

न तेरा अभिमान साथ गया न मेरा गुरुर


तेरे वो सीमित शब्द

बेरुख़ी है या डर है तेरा

कभी फ़ुरसत मे सोचुगां

अभी जोड़ लूँ मनो को

जो उजड़ने को हैं

कौन जाने फिर 

मुलाक़ात हो न हो 


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