वो जो हैं
तेरी नज़दीकियों का वो डर
अब दूरियों का ख़ौफ़
मुसाफ़िर ही तो है हम
वो जो है सबकी उम्मीदों का कल
तुझे सुनने की वो लगन
इन्तज़ार कहने की बारी का
अक्सर मौन ने ही बात की मौन से
वो जो हैं अलग झुण्ड सबके
तुझसे सामने की असहजता
वो आशाओं की खोज
ये रिश्ता भी रहा कुछ छांव धूप
वो जो हैं सबकी प्राथमिकताओं के रुप
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