कभी पूछता तो
कभी पूछता तो जानता मेरी बदमाशियां
तु सुनता रहा सबकी और मेरे लिए सोच बनाता रहा
कभी सामने बैठकर दो बातें तो करता
जानता कि कुछ अरमान है जिसे तूने देखा ही नहीं
कभी आता घर के अंदर तो देखता मेरे अांगन मे
तेरे सम्मान के सिवाय कुछ भी नहीं
बाते बहुत थी तुझे बतानी कभी जता भी न पाया
जो तु समझा है मुझे वो एक नया ही रूप है
एकाकी हैं जो रिश्ते वह अपनापन है तु
कभी पाना नहीं चाहा जिसे वह सम्मान है तु
पहाड़ो से निकला हूँ किसी इंद्रधनुष कि चाहत नहीं
मेरा मक़सद दोस्तों का कुनवा बड़ा करना था तुझे जोड़कर .........
Comments
Post a Comment